मुझे बस इतना बताते जाते,
क्यूँ मुस्कुराते थे,तुम आते जाते!
शब-ए-इंतेजार मुख्तसर न हूई,
दम मगर जाता रहा तेरे आते आते।
तिश्नगी लब पे मकीं हो गई,
तेरी जुल्फों की घटा छाते छाते।
दर-ए-दुश्मन था,और मयखाना
गम के मारे बता किधर जाते?
तेरा घर मेरी गली के मोड पे था, रास्ते भला कैसे जुदा हो पाते?
तेरा घर मेरी गली के मोड पे था, रास्ते भला कैसे जुदा हो पाते?
Bahut khub ...
ReplyDeleteशुक्रिया! मन्टू जी.
Deletebrehatareen
ReplyDeleteशुक्रिया, नवाजिश!
Deleteबढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteशुभकामनायें -
हर हर बम बम
आपका धन्यवाद!
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !
सादर
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
शुक्रिया, नवाजिश!
Deleteham bhi aa hi gaye aapki charcha par
ReplyDeletealag alag rachnaon par jate jate
आपका स्वागत है, अपनें विचारों की धारा से सींचिये ख्यालों के इस उपवन को!
Deleteसुंदर प्रस्तुति. अनुपम भाव.
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.
रचना जी आप का "सच में" पर आना काफ़ी समय बाद हुया! सादर धन्यवाद!
Deleteवाह ...बहुत खूब ख्याल है आतेजाते
ReplyDeleteइस पर भी एक नजर .....आपका स्वागत है ....
http://shikhagupta83.blogspot.in/2013/03/blog-post_9.html
बढ़िया प्रस्तुति ,आप भी मेरे ब्लोग्स का अनुशरण करे ,ख़ुशी होगी
ReplyDeletelatest postअहम् का गुलाम (दूसरा भाग )
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