कातिल भी मैं, मरहूम भी मुझे माफ़ करे कौन.
दिल में नहीं है खोट मेरे, नीयत भी साफ़ है,
कमज़ोरियों का मेरी, अब हिसाब करे कौन.
हर बार लड रहा हूं मै खुद अपने आपसे,
जीतूंगा या मिट जाऊंगा, कयास करे कौन.
मुदद्दत से जल रहा हूं मै गफ़लत की आग में,
मौला के सिवा, मेरी नज़र साफ़ करे कौन.
गर्दे सफ़र है रुख पे मेरे, रूह को थकान,
नफ़रत की हूं तस्वीर,प्यार बेहिसाब करे कौन.