अपनी नज़रों से जब जब मैं गिरता गया,
मेरा रुतबा ज़माने में बढता गया!
मेरे अखलाक की ज़बरूत घटती गई,
पैसा मेरी तिजोरी में बढता गया!
मेरे होंठों से मुस्कान जाती रही,
मेरा एहतिराम महफ़िल में बढता गया!
सब सितारे मुझे मूहँ चिढाते रहे,
मैं सिम्त-ए-तारीकी बढता गया!