आपने बरगद देखा है,कभी!
जी हां, ’बरगद’,
बरर्गर नहीं,
’ब र ग द’ का पेड!
माफ़ करें,
आजकल शहरों में,
पेड ही नहीं होते,
बरगद की बात कौन जाने,
और ये जानना तो और भी मुश्किल है कि,
बरगद की लकडी इमारती नहीं होती,
माने कि, जब तक वो खडा है,
काम का है,
और जिस दिन गिर गया,
पता नही कहां गायब हो जाता है,
मेरे पिता ने बताया था ये सत्य एक दिन!
जब वो ज़िन्दा थे!
अब सोचता हूं,
मोहल्ले के बाहर वाली टाल वाले से पूछुंगा कभी,
क्या आप ’बरगद’ की लकडी खरीदते हो?
भला क्यों नहीं?
क्या बरगद की लकडी से ईमारती सामान नहीं बनता?
पता नहीं क्यों!