हम शेर कहें एसे ज़माने भी आयेगें।
कल रात इस ख्याल से मैं सो नहीं सका,
गर सो गया तो ख्याब सुहाने भी आयेगें।
दुश्मन जो आये कब्र पे,मिट्टी ने ये कहा,
छुप जाओ अब दोस्त पुराने भी आयेंगे।
जो दर्द गैर दे के गये, उनका भी शुक्रिया
अब दोस्त मेरे दिल को दुखाने भी आयेगें।
मैं सज़दा कर रहा था, और पत्थर बना था तू
इस दर पे कभी सर को झुकाने ना आयेगें।
गर तू खुदा था तो मुझे सीने से लगाता,
अब रूठ के तो देख हम मनाने न आयेगें।
इन्सान तो हम भी हैं संगे राह तो नहीं
ठोकर लगे तो लोग क्या उठाने ना आयेगें।
दुश्मन जो आये कब्र पे मिट्टी ने ये कहा
ReplyDeleteछुप जाओ अब दोस्त पुराने भि आयेंगे !
बहुत खूब. मुझे आपकी गज़लें पसन्द हैं और लखनऊ का होने की वजह से शायद मेरा जुडाव अधिक है.
बकलम खुद में मैने कुछ अपना लिखा है.कभी देखियेगा.
बहुत सुन्दर गजल कही है
ReplyDeleteसमर्थक लिंक लगा दीजिये आपके पास आने में आसानी होगी
वीनस केसरी
A wonderful wonderful poem my friend!!!!!
ReplyDelete* ये कब पता था दर्द के मायने भी आयेगे,
ReplyDeleteहम शेर कहें एसे ज़माने भी आयेगें।*
वाह बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने | बाकी की ग़ज़ल भी पढ़ रहे है.. अपनी नाक़ामियों का जशन मानता हूँ , खुद गिरा था कभी अब गिरतो को उठाता हूँ"
^आपने अपने बारे मैं कितना गहेरा लिखा है...
behtrin gazal.dhnyvad
ReplyDeletebahut khuub. Ghalib ki jhalkiyaanhain.
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