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Saturday, May 30, 2009

चुनिन्दा मुक्तक पुराने पन्नों से!


अच्छा हुआ के आप भी जल्दी समझ गये,
दीवानगी है शायरी कोई अच्छा शगल नहीं!

मेरी बर्बादी में वो भी थे बराबर के शरीक
हां वही लोग, जो मेरी मय्यत पे फ़ूट के रोये।

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मैं अपनी ज़िन्दगी से डर गया था,
मगर जो जी मे आया कर गया था।

पुकारते थे तमाम लोग नाम जिसका,
वो आदमी दर असल में मर गया था।

मैं वहां सज़दा अगर करता तो कैसे?
था वो मशहूर पर मेरे लिये वो दर नया था।

   

4 comments:

  1. पुराने पन्नों के चुनिन्दा मुक्तक बहुत अच्छे हैं।

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  2. bahut sundar muktak hain ek do chura le rahi hoon maaf kariyega :)

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  3. Bhavana Ji,
    Chori kyon! aap sab ke liye hi likha gaya hai!Ye sab aap logo ka hi hai.
    Na shabd mere banaye ,na vichar mere.
    'sach mein ' par aate rahein!
    Dhanywaad!

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  4. bahut oonchi soch hai aapki...shabdo ka chayan bahut sateek

    www.pyasasajal.blogspot.com

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