साल,
माथे या गालों की झुर्रियां,
सफ़ेद बालों की झलक,
मैं मानता नहीं,
उम्रदराज़ होने के लिये,
न तो सालों लम्बे सफ़र की ज़रूरत है,
और न अपने चेहरे पे वख्त की लकीरें उकेरने की,
उम्र तो वो मौसम है ज़िन्दगी का,
जो दबे पांव चला आता है,
अचानक कभी भी,
और सिखा जाता है,
सारे दांव पेंच ,दुनियादारी के,
आप मानते नहीं ,
चलो जाने दो,
अगली बार जब ट्रैफ़िक लाइट पर रुको,
तो कार के शीशे से बाहर देखना,
छै से दस साल की कई कम उम्र लडकियां ,
अपनी गोद में खुद से जरा ही कम बच्चे को लिये,
दिख जायेंगी,
उम्र नापने के सारे पैमाने,
तोड देने का दिल करेगा मेरे दोस्त!
और तब,
एक बार,
सिर्फ़ एक बार,
उन सब ’हेयर कलर’ और ’स्किन क्रीम’ के
नाम याद करने की कोशिश करना,
जो उम्र के निशान मिटा देने का दावा करते है,
उन में से एक भी,
उम्र के,
इन निशानों को नहीं मिटा सकतीं!
Umr ke nishaan jo dilpe padte hain..wo kya mitenge mitanese..wo to dikhtebhee nahee..!
ReplyDeleteAapko maine "authorise" kar diya hai, mere blogpe !
Jab bhee likhnaa chahen,zaroor likhen..mujhe behad khushee hogee!
Snehadar sahit
Shama
भावुक कविता है
ReplyDeleteवीनस केसरी
कविता में मनोभावों को सुन्दर ढंग से पिरोया गया है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आभार्
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