ये सब हैं चाहने वाले!और आप?

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Tuesday, August 10, 2010

मर्दशुमारी!

जनगणना में सुना है अब ज़ात पूछी जायेगी,
इन्सान से हैवानियत की बात पूछी जायेगी!

कर चुके हम हर तरह से अपने टुकडे,
मुर्दों से अब उनकी औकात पूछी जायेगी?

दे सके न भूख से मरतों को दाना,
क्या मिलें आज़ादी की सौगात पूछी जायेगी?

गंदगी, आलूदगी फ़ैली है घरों में,
कैसे बदलेगी काइनात पूछी जायेगी?


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आलूदगी: Contamination
मर्दशुमारी: जनगणना

Tuesday, May 4, 2010

आप ही कहो,क्या सच है?

औरतें भी इन्सान जैसी हो गईं है,
माँ थीं वो, हैवान जैसी हो गईं हैं!

निरुपमा ने ये शायद  सोचा नहीं था,
आधुनिकता परिधान जैसी हो गई है।

माधुरी को भी ये कब पता था,
अय्यारी ईमान जैसी हो गई है।

खिलखाती खेलती थी बेटी मेरी,
खबरें सुन कर,हैरान जैसी हो गई है। 

Saturday, May 1, 2010

गद्दारी, सच में!

पैसे को हमने इस तरह भगवान कर दिया,
मक्कारी को इंसान ने ईमान कर लिया।

हमने तो उनको हाकिम का दर्ज़ा अता किया,
इज़्ज़त को सबकी,उसने पावदान कर लिया।


मिट्टी में देश की क्या अब खुशबू नहीं बची,
चंद हरकतो ने इसको नाबदान कर दिया।

यकीनन सदा से ही औरत, तस्वीरे वफ़ा है 
एक गद्दार ने इस यकीं को बदनाम कर दिया।

Thursday, April 29, 2010

रंग कैसे कैसे!


 सबसे नयी और रियल  अभिनेत्री {Reality Show at Islamabad (D) Fame}
 माधुरी जी के (अ) सम्मान में !


लहर खुद ही तूफ़ां से जाकर मिल गई!
कश्तियां करती रहीं साहिल की बात।


Thursday, November 12, 2009

तन्हाई का सच!



कल रात सवा ग्यारह बजे,
मैं अचानक तन्हा हो गया!

एक दम तन्हा!  


ऐसा नहीं के इस से पहले,
मुझे कभी मेरी तन्हाई का अहसास नहीं था!


पर कल रात मैने एक गलती की!


अपने Mobile की phone book को  browse  करने लगा!
दिल में आया कि देखूं कौन कौन वो लोग हैं,

जिन्हें गर अभी  call  करूं तो,
बिन अलसाये,बिन गरियाये (दिल में)
मेरी call लेगें (और खुश होगें!)

सच कह्ता हूं!
मैने इस से ज्यादा तन्हाई कभी मह्सूस नहीं की!

क्यों के एक भी Contact  ऐसा नहीं था जिसे,
मैं बेधडक call कर सकूं,


एक Thursday evening को!
(कल एक  working day है!)


सिर्फ़ ये कहने के लिये!


बहुत दिन हुये ’तुम से बात नहीं हुई’

और वो खुश हो के कहे,




"अच्छा लगा के तुमने याद किया!"
(झूंठ ही सही!!!!)


"सच में" कितना तन्हा हूं मैं!


और आप?  









Wednesday, October 28, 2009

सच गुनाह का!

तेरा काजल जो 
मेरी कमीज़ के कन्धे पर लगा रह गया था,
अब मुझे कलंक सा लगने लगा है.

क्या मैं ने अकेले ही
जिया था उन लम्हों को?
तो फ़िर इस रुसवाई में,
तू क्यों नही है साथ मेरे!

क्या दर्द के लम्हों से मसरर्त 
की चन्द घडियां चुरा लेना गुनाह है,
गर है! तो सज़ा जो भी हो मंज़ूर,


गर नही!तो,


’गुनाह-ए-बेलज़्ज़त, ज़ुर्म बे मज़ा’
कैसा मुकदमा,और क्यूं कर सज़ा?’

Friday, October 23, 2009

सच बे उन्वान!



पलकें  नम थी मेरी,  
घास पे शबनम की तरह,
तब्बसुम लब पे सजा था,
किसी मरियम की तरह.

वो मुझे छोड गया ,
संगे राह समझ. 
मै उसके साथ चला था,
हरदम, हमकदम की तरह.

वफ़ा मेरी कभी 
रास न आई उसको,
वो ज़ुल्म करता रहा, 
मुझ पे बेरहम की तरह.

फ़रिस्ता मुझको समझ के ,
वो आज़माता रहा,
मैं तो कमज़ोर सा इंसान 
था आदम की तरह.

ख्वाब जो देके गया ,
वो बहुत हंसी है मगर,
तमाम उम्र कटी मेरी 
शबे गम की तरह.



Wednesday, October 14, 2009

बस कह दिया!

चमन को हम साजाये बैठे हैं,
जान की बाज़ी लगाये बैठे हैं.

तुम को मालूम ही नहीं शायद,
दुश्मन नज़रे गडाये बैठे हैं.

सलवटें बिस्तरों पे रहे कायम,
नींदे तो हम गवांये बैठें हैं

फ़ूल लाये हो तो गैर को दे दो,
हम तो दामन जलाये बैठे हैं.

मयकदे जाते तो गुनाह भी था,
बिन पिये सुधबुध गवांये बैठे हैं.

सच न कह्ता तो शायद बेह्तर था,
सुन के सच मूंह फ़ुलाये बैठे हैं.


Tuesday, August 25, 2009

फ़िर से पढे 'ताल्लुकात का सच'!

मुझसे कह्ते तो सही ,जो रूठना था,
मुझे भी , झंझटों से छूटना था.

तमाम अक्स धुन्धले से नज़र आने लगे थे,
आईना था पुराना, टूटना था.

बात सीधी थी, मगर कह्ता मै कैसे,
कहता या न कहता, दिल तो टूटना था.

मैं लाया फूल ,तुम नाराज़ ही थे,
मैं लाता चांद, तुम्हें तो रूठना था.

याद तुमको अगर आती भी मेरी,
था दरिया का किनारा , छूटना था.

Monday, June 15, 2009

ताल्लुकात का सच!


मुझसे कह्ते तो सही ,जो रूठना था,
मुझे भी , झंझटों से छूटना था.

तमाम अक्स धुन्धले से नज़र आने लगे थे,
आईना था पुराना, टूटना था.

बात सीधी थी, मगर कह्ता मै कैसे,
कहता या न कहता, दिल तो टूटना था.

मैं लाया फूल ,तुम नाराज़ ही थे,
मैं लाता चांद, तुम्हें तो रूठना था.

याद तुमको अगर आती भी मेरी,
था दरिया का किनारा , छूटना था.

Friday, June 12, 2009

नज़दिकीयों का सच!(Part II)


रास्ते में संग भी थे,
खार थे, थी मुश्किलें.
मैं मगर आगे न बढता,
लाचारियां इतनी न थीं.

शहर के पागल सजर में
ढूंडता उसको कहां,
उस अज़ी्जो आंशनां की,
नीशानियां इतनी न थीं.

दोस्तों की संगदिली का,
क्या करें सबसे गिला,
इक ज़रा सी बेरुखी थी,
बेईमानियां इतनी न थीं.

वो सरापा सामने था,
या था वो बस एक सराब,
सरे शोरीदः हाल था,
नादानियां इतनी न थीं.

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सरापा :- आमने सामने/Face to face

सराब :- मृगतृष्णा/Mirage

सरे शोरीदः :-इश्क का पागलपन