लहू अब अश्क में बहने लगा है,
नफ़रतें ख़्वाब में आने लगीं हैं,
मरुस्थल से जिसे घर में जगह दी
नागफ़नी फ़ूलों को खाने लगीं हैं,
हमारी फ़ितरत का ही असर है,
चांदनी भी तन को जलाने लगी है
चलो अब चांद तारो को भी बिगाडें
ऋतुयें धरती से मूंह चुराने लगीं है.
बात कडवी है तो कडवी ही लगेगी,
सच्ची बातें किसको सुहानी लगीं है.
"बात कडवी है तो कडवी ही लगेगी,
ReplyDeleteसच्ची बातें किसको सुहानी लगीं है."
एकदम सही लिखा साहब,
आभार।
बात कडवी है तो कडवी ही लगेगी,
ReplyDeleteसच्ची बातें किसको सुहानी लगीं है.
-क्या बात कही है, वाह!!
सारे शेर लाजवाब है...
ReplyDeleteऔर सच कह रहे हैं ...
कुछ वर्तनियों में दोष है..ठीक कर लीजिये...
आभार..
बात कडवी है तो कडवी ही लगेगी,
ReplyDeleteसच्ची बातें किसको सुहानी लगीं है.
Awesome lines.. Nice work!!
Bahut sundar ghazal hai...
ReplyDeletematle me radeef galat hai....waise lekhan aur chintan dono achhe hain...
Kahs karke ye sher bahut achha laga..
हमारी फ़ितरत का ही असर है,
चांदनी भी तन को जलाने लगी है
चलो अब चांद तारो को भी बिगाडें
ReplyDeleteरितुयें धरती से मूंह चुराने लगीं है.
क्या बात है ...क्या बात
ग़ज़ल की सबसे बड़ी बात उसका सीधे मन मैं उतरना है .
बधाई !!!
"Kavita" sarahana:
ReplyDeleteAmitraghat said...
"बात कडवी है तो कडवी ही लगेगी,
सच्ची बातें किसको सुहानी लगीं है."
सुन्दर पँक्तियाँ.........."
April 8, 2010 10:35 PM
श्याम कोरी 'उदय' said...
बात कडवी है तो कडवी ही लगेगी,
सच्ची बातें किसको सुहानी लगीं है.
...bahut sundar, behatareen abhivyakti!!!!
April 8, 2010 11:18 PM
वाणी गीत said...
ऋतुएं बदलने लगी हैं ...अब चाँद तारों पर भी ..
बदलते पर्यावरण के साथ इंसान की फितरत को खूब बयान कर रही हैं ये पंक्तियाँ ...
बात सच्ची कडवी ही होती है कब किसी को अच्छी लगी है ...!!
April 8, 2010 11:45 PM
sangeeta swarup said...
आज की कड़वी सच्चाई को बताती अच्छी ग़ज़ल
April 9, 2010 12:43 AM
अरुणेश मिश्र said...
कथन उपयुक्त ।
April 9, 2010 1:25 AM
वन्दना said...
बात कडवी है तो कडवी ही लगेगी,
सच्ची बातें किसको सुहानी लगीं है.
waah.........bahut hi sundar panktiyan aur umda prastuti.
April 9, 2010 1:55 AM