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Saturday, April 10, 2010

शायद इसी लिये!

तेरे थरथराते कांपते होठों पर,
मैंने कई बार चाहा कि,
अपनी नम आंखे,
रख दूं!

पर,

तभी बेसाख्ता  याद आया  
भडकती आग पर,
घी नही डाला करते!


मुझे यकीं है के,
तेरे भी ज़ेहन में,
अक्सर आता है,
ये ख्याल के 

तू भी,

कभी तो!


मेरे ज़ख्मों पे दो बूंद 
अपने आंसुओं की गिरा दे,

पर मैं जानता हूं
के तू भी डरता है,
भडकती आग में 
घी डालने से!

9 comments:

  1. अति सुन्दर रचना है ! कभी कभी अधुरा प्यार ही सबसे यादगार बन जाता है !

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  2. सही लिखा है बहुत बढ़िया ..

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  3. क्या ख्याल बुना है…………………गज़ब कर दिया।

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  4. बहुत खूब... अद्भुत, सुंदर...

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना है आपकी..
    हाँ...कभी कभी देर हो जाती है आने में...
    लेकिन जब भी आती हूँ रचनाएँ प्रभावित करती हैं...

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  6. बहुत ही कमाल के शब्द ... आँसू भी तो घी का काम करते हैं कभी कभी ...

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  7. अद्भुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बहुत खूब! बधाई!

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  8. Kya gazab likhate hain aap! Alfazon ki mohtaji hai, aur kya kahun?

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बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.