तेरे थरथराते कांपते होठों पर,
मैंने कई बार चाहा कि,
अपनी नम आंखे,
रख दूं!
पर,
तभी बेसाख्ता याद आया
भडकती आग पर,
घी नही डाला करते!
मुझे यकीं है के,
तेरे भी ज़ेहन में,
अक्सर आता है,
ये ख्याल के
तू भी,
कभी तो!
मेरे ज़ख्मों पे दो बूंद
अपने आंसुओं की गिरा दे,
पर मैं जानता हूं
के तू भी डरता है,
भडकती आग में
घी डालने से!
अति सुन्दर रचना है ! कभी कभी अधुरा प्यार ही सबसे यादगार बन जाता है !
ReplyDeleteसही लिखा है बहुत बढ़िया ..
ReplyDeleteक्या ख्याल बुना है…………………गज़ब कर दिया।
ReplyDeleteबहुत खूब... अद्भुत, सुंदर...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना है आपकी..
ReplyDeleteहाँ...कभी कभी देर हो जाती है आने में...
लेकिन जब भी आती हूँ रचनाएँ प्रभावित करती हैं...
बहुत ही कमाल के शब्द ... आँसू भी तो घी का काम करते हैं कभी कभी ...
ReplyDeleteअद्भुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बहुत खूब! बधाई!
ReplyDeleteKya gazab likhate hain aap! Alfazon ki mohtaji hai, aur kya kahun?
ReplyDeleteSalamm hai....apko.
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