पैसे को हमने इस तरह भगवान कर दिया,
मक्कारी को इंसान ने ईमान कर लिया।
हमने तो उनको हाकिम का दर्ज़ा अता किया,
इज़्ज़त को सबकी,उसने पावदान कर लिया।
मिट्टी में देश की क्या अब खुशबू नहीं बची,
चंद हरकतो ने इसको नाबदान कर दिया।
यकीनन सदा से ही औरत, तस्वीरे वफ़ा है
एक गद्दार ने इस यकीं को बदनाम कर दिया।
आपने सच लिखा है ... पर एक औरत की गद्दारी से पूरी औरत ज़ात बदनाम नहीं होगी ... वैसे रचना अच्छी है !
ReplyDeleteउसकी गद्दारी औरत होने की वजह से नहीं बल्कि उसके पाकिस्तान समर्थक सोच होने के कारण हुयी है
ReplyDeleteय़ुगल जी,
ReplyDeleteमैने तो वैसा कुछ नहीं कहा था!फ़िर भी आपके विचार को सम्मान!
सार्थक रचना है। "सर्वे गुणा: कंचनमाश्र्यन्ति"।
ReplyDeleteशर्म आनी चाहिये ऐसे गद्दारों को।
आभार
वाह वाह क्या बात है! बहुत बढ़िया! बिल्कुल सही फ़रमाया है आपने!
ReplyDeleteसच कहूँ तो ये कविता उन बड़े गद्दारों की चर्चा नही कर रही, जिनके लिए माधुरी जैसी औरत गद्दार बनने को मजबूर होती है /
ReplyDeletebahut hi achhe wichaar...
ReplyDeletebahut khub..
yun hi likhte rahein...
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http://i555.blogspot.com/
मजा आ गया
ReplyDeleteजितनी तारीफ़ की जाय कम है
सिलसिला जारी रखें
आपको पुनः बधाई
satguru-satykikhoj.blogspot.com
काली करतूतें "उनकी" भविष्य में कोई भी तंत्र न पकड़ सके ,
ReplyDeleteमौजूदा व्यवस्था ने "उनको" पदम् पुरुस्कार प्रदान कर दिया !
एक दम नया प्रयोग किया है आपने . छोटी-२ बातों का रहस्य पकड़ने का तरीका और प्रस्तुतीकरण विचार्रोतेजक है . मेरी उपरोक्त दो पंक्तियाँ स्थिति को और स्पष्ट बनायेंगी , ऐसा विशवास है .
डॉ अजय गुप्ता
drajaykgupta.blogspot.com
शानदार प्रस्तुति ...पहली बार आया आपके ब्लॉग पर .....बहुत अच्छा लगा ,,,,,बहुत सही कहा आपने ......
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