bahut hi khubsurat rachna... achha laga padhkar... ----------------------------------- mere blog par meri nayi kavita, हाँ मुसलमान हूँ मैं..... jaroor aayein... aapki pratikriya ka intzaar rahega... regards.. http://i555.blogspot.com/
Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me! बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.
आपकी यह रचना अच्छी लगी ... सच है कि आज शोर शराबे में खो कर इंसान दिल कि बात सुनना भूल गया है ...
ReplyDeleteखामोशी की अपनी आवाज़ होती है....बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteAapki khaamoshi ki daastan ... behad khaamosh daastaan ...
ReplyDelete...बेहतरीन !!!
ReplyDeleteतर्क वितर्क से खामोश हुई ख़ामोशी , इस ख़ामोशी को खामोश होकर सुना जा सकता है, बहुत बढ़िया
ReplyDeletebahut hi khubsurat rachna...
ReplyDeleteachha laga padhkar...
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हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
jaroor aayein...
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मनभावन रचना..अच्छी लगी..बधाई.
ReplyDeleteछोटी, किंतु सशक्त कविता। कितनी खामोशियों को एक साथ स्वर देती हुई।
ReplyDeleteप्रशंसनीय...!
Oh! Yah rachna chhoot gayi thi mujh se! Nayi rachna talashne pahunchi aur yah mil gayi..kya kahun?
ReplyDelete..प्रशंसनीय...!
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