मोहब्बतों की कीमतें चुकाते,
मैने देखे है,
तमाम जिस्म और मन,
अब नही जाता मैं कभी
अरमानो की कब्रगाह की तरफ़।
दर्द बह सकता नहीं,
दरिया की तरह,
जाके जम जाता है,
लहू की मांनिद,
थोडी देर में!
अश्क से गर कोई
बना पाता नमक,
ज़िन्दगी खुशहाल,
कब की हो गई होती।
रिश्तो के खिलौने,
सिर्फ़ बहला सकते है,
दुखी मन को,
ज़िन्दगी गुजारने को,
पैसे चाहिये!!!!!!
बेहतरीन !
ReplyDeleteवाह...क्या शब्द हैं...और क्या गज़ब के भाव हैं...अत्यंत प्रभावशाली लेखन...आपकी सोच सबसे अलग और कमाल की है...मेरी शुभ कामनाएं स्वीकारें...
ReplyDeleteऔर हाँ मदन मोहन जी की आवाज़ में गाया मई री...मेरा बहुत प्रिय गीत है...उसे सुनवाने का कोटिश धन्यवाद...
नीरज
बहुत खूब कहा है आपने इस रचना में ...सुन्दर लेखन के लिये बधाई ।
ReplyDeleteवाह..बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteअश्क से गर कोई................
ReplyDeleteज़िन्दगी गुजारने को...................
वाह वाह, ग़ज़ब सर जी ग़ज़ब|
ये बेवज़ह कि गुफ्तगू नहीं है...बहुत सी वजहें नज़र आ रही हैं....अपने ही आस-पास,अपने लोगों के साथ,अपने भीतर भी......
ReplyDeleteआनंद! आनंद! आनंद!
ReplyDeleteआशीष
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हमहूँ छोड़ के सारी दुनिया पागल!!!
रिश्तो के खिलौने,
ReplyDeleteसिर्फ़ बहला सकते है,
दुखी मन को,
ज़िन्दगी गुजारने को,
पैसे चाहिये!!!!!
शब्दों में छुपी सच्चाई नज़ आ रही है .... गज़ब के शब्द हैं भावों को व्यक्त करने वाले ...
नया साल मुबारक हो ..
charon muktak bhav aur shabdon se paripoorn.
ReplyDeletebahut achchhi rachna.
khoobsurat...
ReplyDeletepyaari..