ज़ख्म मेरा गुलाब हो जाये,
अँधेरा माहताब हो जाये,
कैसी कैसी तमन्नायें हैं मेरी,
ये जहाँ बस्ती-ए-ख्वाब हो जाये।
तू कभी मुझको आके ऎसे मिल,
मेरा पानी शराब हो जाये,
मेरी नज़रो में हो वो तासीर,
तेरे रुख पे हिज़ाब हो जाये।
जो भी इन्सान दर्द से मूहँ मोडे,
उसका खाना खराब हो जाये।
रोज़-ए-महशर का इन्तेज़ार कौन करे,
अब तो ज़ालिमों का हिसाब हो जाये!
अँधेरा माहताब हो जाये,
कैसी कैसी तमन्नायें हैं मेरी,
ये जहाँ बस्ती-ए-ख्वाब हो जाये।
तू कभी मुझको आके ऎसे मिल,
मेरा पानी शराब हो जाये,
मेरी नज़रो में हो वो तासीर,
तेरे रुख पे हिज़ाब हो जाये।
जो भी इन्सान दर्द से मूहँ मोडे,
उसका खाना खराब हो जाये।
रोज़-ए-महशर का इन्तेज़ार कौन करे,
अब तो ज़ालिमों का हिसाब हो जाये!
अच्छी रचना !नव वर्ष की बधाई हो
ReplyDeleteतू कभी मुझको आके ऎसे मिल,
ReplyDeleteमेरा पानी शराब हो जाये,
मेरी नज़रो में हो वो तासीर,
तेरे रुख पे हिज़ाब हो जाये।
bahut hi khoob
बहुत खूब ..हर शब्द लाजवाब ।
ReplyDeleteलाजवाब ....
ReplyDeleteज़ख्म मेरा गुलाब हो जाये,
ReplyDeleteअँधेरा माहताब हो जाये,
कैसी कैसी तमन्नायें हैं मेरी,
ये जहाँ बस्ती-ए-ख्याब हो जाये।
...लाजवाब रचना !
नव वर्ष की बधाई
अब तो ज़ालिमों का हिसाब हो जाये!
ReplyDeleteबढिया है जी.
मेरी नज़रो में हो वो तासीर,
ReplyDeleteतेरे रुख पे हिज़ाब हो जाये।
वाह!
' सच में '......... हर नज़्म काबिलेतारीफ ...
ReplyDelete.
नये दसक का नया भारत (भाग- १) : कैसे दूर हो बेरोजगारी ?
बहुत अच्छा
ReplyDeleteतू कभी मुझको आके ऎसे मिल,
ReplyDeleteमेरा पानी शराब हो जाये,
मेरी नज़रो में हो वो तासीर,
तेरे रुख पे हिज़ाब हो जाये ...
खूबसूरती में डूब कर लिखी खूबसूरत नज़्म ....
क्या अदायगी है मुहब्बत की ... हर शे खूबसूरत हो रही है ...
bahut bahut achhi gazal badhai ke saathsaath nav -varshh par hardik abhi nandan.
ReplyDeleteतू कभी मुझको आके ऎसे मिल,
मेरा पानी शराब हो जाये,
मेरी नज़रो में हो वो तासीर,
तेरे रुख पे हिज़ाब हो जाये।
bahut achhi lagin ye panktiyan
poonam
सबसे खूबसूरत ये पंक्तियां लगीं,
ReplyDelete"तू कभी मुझको आके ऎसे मिल,
मेरा पानी शराब हो जाये,
मेरी नज़रो में हो वो तासीर,
तेरे रुख पे हिज़ाब हो जाये।"
nice one.
ReplyDeletePlease visit my blog..
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thought provoking - yaarab zaalimo ka jaldi hisaab ho jaaye - very nice
ReplyDelete"रोज़-ए-महशर का इन्तेज़ार कौन करे,
ReplyDeleteअब तो ज़ालिमों का हिसाब हो जाये!"
बहुत खूब
सुन्दर ग़ज़ल
बधाई
आभार
Gantantr Diwas kee dheron shubhkamnayen!
ReplyDeletewaaahh
ReplyDeletekyaa baat hai...
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
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