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Saturday, February 12, 2011

डरे हुये तुम!




तुम मुझे प्यार करना बन्द मत करना,

इस लिये नहीं कि,
मैं जी नही पाऊँगा,
तुम्हारे प्यार के बिना,

हकीकत ये है, कि
मैं मर नहीं पाऊँगा सुकून से,

क्यो कि,

जिस को कोई प्यार न करता हो,


उसका मरना भी कोई मरना है!

और वैसे भी,

सूनी और वीरान कब्रें,
बहुत ही डरावनी लगती है!

और कौन है? जो फ़ूल रखेगा,
मेरी कब्र पर,तुम्हारे सिवा!

सच में, मैं ये जानता हूँ,

तुम्हें कितना डर लगता है,
वो ’हौरर शो’ देखते हुये!

और डरे हुये तुम 

मुझे बिल्कुल अच्छे नहीं लगते।


Thursday, January 6, 2011

तमन्ना

ज़ख्म मेरा गुलाब हो जाये,
अँधेरा माहताब हो जाये,
कैसी कैसी तमन्नायें हैं मेरी,
ये जहाँ बस्ती-ए-ख्वाब हो जाये।

तू कभी मुझको आके ऎसे मिल,
मेरा पानी शराब हो जाये,
मेरी नज़रो में हो वो तासीर,
तेरे रुख पे हिज़ाब हो जाये।

जो भी इन्सान दर्द से मूहँ मोडे,
उसका खाना खराब हो जाये।
रोज़-ए-महशर का इन्तेज़ार कौन करे,
अब तो ज़ालिमों का हिसाब हो जाये!

Friday, May 14, 2010

’छ्ज्जा और मुन्डेर’

कई बार 
शैतान बच्चे की तरह
हकीकत को गुलेल बना कर
उडा देता हूं, 
तेरी यादों के परिंद
अपने ज़ेहन की, 

मुन्डेरो से,

पर हर बार एक नये झुंड की
शक्ल में 
आ जातीं हैं और
चहचहाती हैं  




तेरी,यादें


और सच पूछो तो 

अब उनकी आवाज़ें
टीस की मानिन्द चुभती सी लगने लगीं है।


मैं और मेरा मन 
दोनो जानते हैं,
कि आती है
तेरी याद,
अब मुझे,ये अहसास दिलाने कि


तू नहीं है,न अपने 


छ्ज्जे पर 



और न मेरे आगोश में।

Saturday, July 4, 2009

चमन का सच


राज़ अपने सारे मेरी पेशानी पे वो लिख गया
बहुत मासूम है उसे ख्याब छुपाने नही आते.

मै बादल हूं,यहां से मेरा गुम जाना ही बेह्तर है,
नम पलकों को, बारिश के ये ज़माने नही भाते.

चलो अब नींद से भी अपना रिश्ता तोड लेता हूं,
खुली आंखो में तो, ख्याब सुहाने नहीं आते.

गली तेरी क्या, तेरे शहर का भी अब रुख न करेंगे,
चमन की चाह है, हम फ़ूलों को रूलाने नहीं आते.