ये सब हैं चाहने वाले!और आप?

Friday, March 15, 2013

ख्वाहिशें


ख्वाब पलकों के पीछे से चुभने लगे,
मेरा दिलबर मुझे रू-ब-रू चाहिये!


अँधेरा पुतलियों तक  पहुँचने लगा,
नूर तेरा मुझे अब चार सू चाहिये!



फ़ूल कागज़ के हैं ये महकते  नहीं,

गेसुओं की तेरे मुझको वो बू चाहिये!


आँख से जो गिरा अश्क है बेअसर,
जो लफ़्ज़ों मे हो वो लहू चाहिये!

7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (16-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

    ReplyDelete
  2. मुझे इस सम्मान के काबिल समझने के लिये आपका शुक्रिया, वन्दना जी!

    ReplyDelete
  3. ख्वाब पलकों के पीछे से चुभने लगे,
    मेरा दिलबर मुझे रू-ब-रू चाहिये!

    ....वाह! बहुत उम्दा प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  4. फ़ूल कागज़ के हैं ये महकते नहीं,
    गेसुओं की तेरे मुझको वो बू चाहिये!..

    वह ... मासूम सी चाह ... जरूर मिलेगी ...

    ReplyDelete
  5. आँख से जो गिरा अश्क है बेअसर,
    जो लफ़्ज़ों मे हो वो लहू चाहिये..
    वाह! बहुत खूब!..बहुत बढ़िया

    ReplyDelete

Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me!
बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.