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Friday, May 14, 2010

’छ्ज्जा और मुन्डेर’

कई बार 
शैतान बच्चे की तरह
हकीकत को गुलेल बना कर
उडा देता हूं, 
तेरी यादों के परिंद
अपने ज़ेहन की, 

मुन्डेरो से,

पर हर बार एक नये झुंड की
शक्ल में 
आ जातीं हैं और
चहचहाती हैं  




तेरी,यादें


और सच पूछो तो 

अब उनकी आवाज़ें
टीस की मानिन्द चुभती सी लगने लगीं है।


मैं और मेरा मन 
दोनो जानते हैं,
कि आती है
तेरी याद,
अब मुझे,ये अहसास दिलाने कि


तू नहीं है,न अपने 


छ्ज्जे पर 



और न मेरे आगोश में।

Wednesday, May 27, 2009

मृत्यु का सच!


मर के भी  कब्र में क्यों है बेचैनी,
वो खलिश अज़ीब किस्म की थी.

चारागर मशरूफ़ थे ईलाज-ए- मरीज-ए-रुह में,
बीमार पर जाता रहा तकलीफ़ उसको को जिस्म की थी.

किस्सागो कहता रहा ,रात भर बातें सच्ची,
नींद उनको आ गयी, तलाश जिन्हें तिलिस्म की थी.