फ़लक पे झूम रही सांवली घटायें हैं,
बदलियां हैं या, ज़ुल्फ़ की अदायें हैं।
बुला रहा है उस पार कोई नदिया के,
एक कशिश है या, यार की सदायें हैं।
बूटे बूटे में नज़र आता है तेरा मंज़र,
मेरी दीवानगी है, या तेरी वफ़ायें हैं।
याद तेरी मुझे दीवानवर बनाये है,
ये ही इश्क है,या इश्क की अदायें हैं।
दिल तो मासूम है, कि तेरी याद में दीवाना है,
असल में तो न घटा है, न बदली, न हवायें हैं!
ये सब हैं चाहने वाले!और आप?
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Friday, July 9, 2010
Tuesday, March 31, 2009
माहौल का सच!
लिखता नही हूँ शेर मैं, अब इस ख़याल से,
किसको है वास्ता यहाँ, अब मेरे हाल से.
चारागर हालात मेरे, अच्छे बता गया,
कुछ नये ज़ख़्म मिले हैं मुझे गुज़रे साल से
मासूम लफ्ज़ कैसे, मसर्रत अता करें,
जब भेड़िया पुकारे मेमने की खाल से.
इस तीरगी और दर्द से, कैसे लड़ेंगे हम,
मौला तू , दिखा रास्ता अपने ज़माल से.
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