लिखता नही हूँ शेर मैं, अब इस ख़याल से,
किसको है वास्ता यहाँ, अब मेरे हाल से.
चारागर हालात मेरे, अच्छे बता गया,
कुछ नये ज़ख़्म मिले हैं मुझे गुज़रे साल से
मासूम लफ्ज़ कैसे, मसर्रत अता करें,
जब भेड़िया पुकारे मेमने की खाल से.
इस तीरगी और दर्द से, कैसे लड़ेंगे हम,
मौला तू , दिखा रास्ता अपने ज़माल से.
माननीय महोदय,
ReplyDeleteआज आपके ब्लाग पर आने का अवसर मिला। बहुत ही उपयोगी रचना है आपकी। यदि आप इन्हें प्रकाशित कराना चाहते हैं तो मेरे ब्लगा पर अवश्य ही पधारे। आप निराश नहीं होंगे।
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अखिलेश शुक्ल
जी हाँ!
ReplyDeleteआपने माहौल के सच को आइना दिखा दिया है।
आपको अन्तर्राष्ट्रीय महामूर्ख दिवस की
शभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ।
सादर अभिवादन
ReplyDeleteबहुत ही संदर प्रस्तुति भारतीय जन मानस को आलोकित कर देने वाली भाषा तथा विचारों का सरस तथा अविरल प्रवाह।
अखिलेश शुक्ल
संपादक कथा चक्र
sahi hai..
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