मैने सोच लिया है इस बार
जब भी शहर जाउंगा,
एक खाली जगह देख कर
सजा दूंगा अपने
सारे ज़ख्म,
सुना है शहरों मे
कला के पारखी
रहते है,
सुंदर और नायब चीजों,
के दाम भी अच्छे मिलते है वहां।
पर डरता हूं ये सोच कर,
जंगली फ़ूलो का गुलदस्ता,
कोई भी नहीं सजाता अपने घर में!
खास तौर पे बेजान शहर में!
ये सब हैं चाहने वाले!और आप?
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Saturday, July 3, 2010
Wednesday, April 1, 2009
उसका सच!
मुझे लग रहा है,पिछले कई दिनों से ,
या शायद, कई सालों से,
कोई है, जो मेरे बारे में सोचता रहता है,
हर दम,
अगर ऐसा न होता ,
तो कौन है जो, मेरे गिलास को शाम होते ही,
शराब से भर देता है।
भगवान?
मगर, वो ना तो पीता है,
और ना पीने वालों को पसंद करता है ,
ऐसा लोग कह्ते हैं,
पर कोई तो है वो !
कौन है वो, जो,
प्रथम आलिगंन से होने वाली अनुभुति
से मुझे अवगत करा गया था।
मेरे पिता ने तो कभी इस बारे में मुझसे बात ही नहीं की,
पर कोई तो है, वो!
कौन है वो ,जो
मेरी रोटी के निवाले में,
ऐसा रस भर देता है,
कि दुनियां की कोई भी नियामत,
मुझे वो स्वाद नहीं दे सकती।
पर मैं तो रोटी बनाना जानता ही नही
कोई तो है ,वो!
कौन है वो ,जो,
उन तमाम फ़ूलों के रगं और गंध को ,
बदल देता है,
कोमल ,अहसासों और भावनाओं में।
मेरे माली को तो साहित्य क्या, ठीक से हिन्दी भी नहीं आती।
कोई तो है ,वो,
वो जो भी है,
मैं जानता हूं, कि,
एक दिन मैं ,
जा कर मिलु्गां उससे,
और वो ,हैरान हो कर पूछेगा,
क्या हम, पहले भी ,कभी मिलें हैं?
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