बहुत मासूम है उसे ख्याब छुपाने नही आते.
मै बादल हूं,यहां से मेरा गुम जाना ही बेह्तर है,
नम पलकों को, बारिश के ये ज़माने नही भाते.
चलो अब नींद से भी अपना रिश्ता तोड लेता हूं,
खुली आंखो में तो, ख्याब सुहाने नहीं आते.
गली तेरी क्या, तेरे शहर का भी अब रुख न करेंगे,
चमन की चाह है, हम फ़ूलों को रूलाने नहीं आते.