मुझे भी , झंझटों से छूटना था.
तमाम अक्स धुन्धले से नज़र आने लगे थे,
आईना था पुराना, टूटना था.
बात सीधी थी, मगर कह्ता मै कैसे,
कहता या न कहता, दिल तो टूटना था.
मैं लाया फूल ,तुम नाराज़ ही थे,
मैं लाता चांद, तुम्हें तो रूठना था.
याद तुमको अगर आती भी मेरी,
था दरिया का किनारा , छूटना था.
खूबसूरत रचना ..आपकी हरेक रचना , वैसे एक बार नही,बार, बार दाद लेने की काबिलियत रखती है..!
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बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है।
ReplyDeleteबधाई!
रचना बहुत पसंद आयी
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'चर्चा' पर पढ़िए: पाणिनि – व्याकरण के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार
तमाम अक्स धुन्धले से नज़र आने लगे थे,
ReplyDeleteआईना था पुराना, टूटना था.
बहुत खूब....!!
मुझसे कह्ते तो सही ,जो रूठना था,
ReplyDeleteमुझे भी , झंझटों से छूटना था.
Kya baat hai