रात काली थी मगर काटी है मैने,
लालिमा पूरब में नज़र आने लगी है।
डर रहा हूं मौसमों की फ़ितरतों से,
फ़िलहाल तो पुरव्वईया सुहानी लगी है।
छंट गयी लगता है उसकी बदगुमानी,
पल्लू को उंगली पर वो घुमाने लगी है।
मज़ा इस सफ़र का कहीं गुम न जाये,
मन्ज़िल सामने अब नज़र आने लगी है।
सीखता हूं,रेख्ते के पेच-ओ-खम मैं!
बात मेरी लोगो को अब भाने लगी है।
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रेख्ता:Urdu language used for literature.
पेच-ओ-खम:Complications.
bahut badhiya...
ReplyDeleteडर रहा हूं मौसमों की फ़ितरतों से,
ReplyDeleteफ़िलहाल तो पुरव्वईया सुहानी लगी है।
अहसास से लबरेज ...
छंट गयी लगता है उसकी बदगुमानी,
पल्लू को उंगली पर वो घुमाने लगी है।
बहुत खूबसूरत शेर है ये...गज़ब..
बहुत खूब अल्फ़ाज़ लिखे हैं सर,
ReplyDelete’मज़ा एक सफ़र का कहीं गुम न जाये, मन्ज़िल सामने अब नज़र आने लगी है’
वाकई मन्ज़िल पाने से कहीं बेहतर है मुसलसल सफ़र में रहना।
बहुत शानदार, सच में।
आप लोगों का आभारी हूं,जो आपने अच्छे शब्द कहे मेरी साधारण सी बात पर!शुक्रिया!
ReplyDeleteरात काली थी मगर काटी है मैने,
ReplyDeleteलालिमा पूरब में नज़र आने लगी है।
सच में रात काटने के बाद पूरब की लालिमा का इंतजार रहता है। बाते खूबसूरती से कहीं हैं आपने।
आपकी बात भले ही सधारण हो पर सधारण शब्दों में ही असधारण होने का गुण छुपा होता है।
रात काली थी मगर काटी है मैने
ReplyDeleteलालिमा पूरब में नज़र आने लगी है.....
Raat kalee
katane ke baad
nazar aayee lalema
शानदार है सच में !!!
बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteमित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ!
bahut achcha .
ReplyDeletewah wah
ReplyDeletenice.
ReplyDeleteरात काली थी मगर काटी है मैने,
ReplyDeleteलालिमा पूरब में नज़र आने लगी है।
बहुत सुन्दर!
बहुत सुन्दर...
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