एक पुरानी रचना
पलकें नम, थी मेरी
घास पे शबनम की तरह.
तब्बसुम लब पे सजा था
किसी मरियम की तरह|
वो मुझे छोड गया था
संगे राह समझ
मै उसके साथ चला
हर पल हमकदम की तरह|
फ़रिस्ता मुझको समझ के ,
वो आज़माता रहा,
मैं तो कमज़ोर सा इंसान
था आदम की तरह|
ख्वाब जो देके गया ,
वो बहुत हंसी है मगर,
तमाम उम्र कटी मेरी
शबे गम की तरह।
behatareen nazm...
ReplyDeleteउपेन्द्र जी, आपका शुक्रिया!आपने पसंद किया!
ReplyDeleteआपकी पुरानी रचना में दम है!
ReplyDelete"bahut achha likha hai!"
ReplyDeleteफ़रिस्ता मुझको समझ के ,
ReplyDeleteवो आज़माता रहा,
मैं तो कमज़ोर सा इंसान
था आदम की तरह ...
आदमी कभी कमजोर नहीं होता .. बस ये हालात उसे कमजोर कर देते हैं ....
बहुत प्रभावी रचना है ... लाजवाब ...
दिगम्बर जी, आप मेरे विचार से इत्तेफ़ाक रखते है, अच्छा लगा!शुक्रिया!
ReplyDeleteachhi rachna
ReplyDeletehai aapki
kabhi yaha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
रचनायें भी कभी पुरानी होती हैं भला....
ReplyDeleteवो मुझे छोड गया था
संगे राह समझ
मै उसके साथ चला
हर पल हमकदम की तरह|
मेरा एक जख्म हरा हो गया ये पढ़कर... बहुत ही गहरे शब्द...
शुक्रिया शेखर जी,
ReplyDeleteआपकी नज़र एक और शेर आपके comment के ताल्लुक से:
"शेर सुनना हो जब भी नये रगं का,
मुझको यादों का नस्तर चुभा दीजिये!"
बहुत सुन्दर सहज सरल अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteपलकें नम, थी मेरी
ReplyDeleteघास पे शबनम की तरह.
तब्बसुम लब पे सजा था
किसी मरियम की तरह|
Kya gazab kee panktiyan hain!!
शमा जी,
ReplyDeleteएक लम्बे समय के बाद आपका आना हुया ’सच में’ पर शुक्रिया!
दिल की बात कही है आपने। ज्यादा कुछ नहीं कह पा रहा हूं।
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeletebahut hi achhi nazm,har sher tarrif
ke layak ,bahut hi sundar bhauo se purn---------.
ख्वाब जो देके गया ,
वो बहुत हंसी है मगर,
तमाम उम्र कटी मेरी
शबे गम की तरह।
poonam
हरएक शेर लाजवाब है..
ReplyDelete"हमकदम जिसके थे हम
चार कदम चल कर बोला
अब तेरा रास्ता अलग
और मेरा रास्ता अलग"
(ये मेरा शेर है)
शुक्रिया !!!!