रोना किसे पसंद?
शायद छोटे बच्चे करते हो ऎसा?
आज कल के नहीं
उस समय के,
जब बच्चे का रोना सुन कर माँ,
दौड कर आती थी,
और अपने आँचल में छुपा लेती थी उसे!
अब तो शायद बच्चे भी डरते है!
रोने से!
क्या पता Baby sitter किस मूड में हो?
थप्पड ही न पडे जाये कहीं!
या फ़िर Creche की आया,
आकर मूँह में डाल जाये comforter!
(चुसनी को शायद यही कहते हैं!)
अरे छोडिये!
मैं तो बात कर रहा था, रोने की!
और वो भी इस लिये कि,
मुझे कभी कभी या यूँ कह लीजिये,
अक्सर रोना आ जाता है!
हलाँकि मै बच्चा नहीं हूँ,
और शायद इसी लिये मुझे ये पसंद भी नही!
पर मैं फ़िर भी रो लेता हूँ!
जब भी कोई दर्द से भरा गीत सुनूँ!
जब भी कोई,दुखी मन देखूँ,
या जब भी कभी उदास होऊँ,
मैं रो लेता हूँ! खुल कर!
मुझे अच्छा नहीं लगता!
पर क्या क्या करूँ,
मैं तब पैदा हुआ था जब रोना अच्छा था!
वैसे ही जैसे आज कल,
"दाग" अच्छे होते है,
पर मैं जानता हूँ,
आप भी बुरा नहीं मानेगें!
चाहे आप बच्चे हों या तथाकथित बडे(!)!
क्यों कि मानव मन,
आखिरकार कोमल होता है,
बच्चे की तरह!
मुझे अच्छा नहीं लगता!
ReplyDeleteपर क्या क्या करूँ,
मैं तब पैदा हुआ था जब रोना अच्छा था!
वैसे ही जैसे आज कल,
"दाग" अच्छे होते है,
ise vatvriksh ka madhyam de, shayad rona kuch achha ho jaye
I loved this poem. very poignant!
ReplyDelete.
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.
shilpa
सब नहीं, कुछ दाग अच्छे होते ही हैं।
ReplyDeleteरोना हमेशा अच्छा होता है....कभी दुःख में तो कभी सुख में भी...!!
ReplyDeleteबस अपना दुखड़ा किसी और के सामने मत रोइए...क्योंकि सहानुभूति दिखाने वाले तो मिल जायेंगे....पर सच में दुःख कम करने वाला शायद ही कोई मिले हमें..!!बड़े हुए तो क्या हुआ ?
हमारे रोने का हक हमसे कोई नहीं छीन सकता.और जहाँ दिल होगा वहीँ रोना भी आएगा...तो चलिए हमसब मिल कर रोयें...क्योंकि रोने
के कुछ कारण हम सबके पास हैं!!
क्यों कि मानव मन,
ReplyDeleteआखिरकार कोमल होता है,
बच्चे की तरह!
इस कोमलता को बरकरार रखना ही मानव होने की निशानी है .
वाह...बहुत ही सुन्दर शब्द एवं भावमय प्रस्तुति ।
ReplyDelete@संजय जी,पूनम जी,केवल जी एंव सदा जी आपका आभार होसला अफ़ज़ाई के लिये!आपका पसंद करना ही मेरे मामूली से शब्दों को कविता बना देता है!
ReplyDeleteशुक्रिया!
ये क्या रोना ले बैठे हैं आप.
ReplyDelete@राहुल सिंह जी,
ReplyDeleteये वही रोना है, जो अगर आपने पैदा होते ही न रोया होता तो दाई या नर्स जो भी आपके इस विश्व में आने में आपकी माता की मदद कर रही थी घबरा जाती! और दनादन आपके कोमल नितम्बों को ज़ोर ज़ोर से पीट कर लाल कर देती जबतक आप चीख चीख कर रोने न लगते! यदि यकीन न हो तो अपनी माता से पूछ लीजियेगा!
जी हाँ, रोना जीवन यात्रा शुरू करते ही पहला उद्घोष है जो मनुष्य करता है!
आशा है अब आपके मन में कोई शक नही होगा कि मैं ,कौन सा और किस तरह का रोना ले बैठा हूँ!
बचपन से ज़िन्दगी को जोड़ दिया ...बेहतरीन ...
ReplyDeleteबहुत खूब .. क्या समय आ गया है ... अब रोना भी सोच समझ कर होता है ...
ReplyDeleteगज़ब की उड़ान है कल्पनाओं की ... लाजवाब .
ब्लॉग की दुस्निया में आपका हार्दिक स्वागत |
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लिखा है अपने |
अप्प मेरे ब्लॉग पे भी आना के कष्ट करे
http://vangaydinesh.blogspot.com/
ब्लॉग की दुस्निया में आपका हार्दिक स्वागत |
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लिखा है अपने |
अप्प मेरे ब्लॉग पे भी आना के कष्ट करे
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