जब भी कोशिश करता हूँ,
गर्व करने की,
कि मैं इंसान हूँ!
एक थपेडा,
एक तमाचा कुदरत का,
हल्के से ही सही,
कह के जाता है,
कि "मैं" बलवान हूँ!
हर समय ये याद रखना,
"मैं",
वख्त हूँ कभी,
कुदरत कभी,
इंसानी फ़ितरत कभी,
और कभी आखिर में
"मै" ही भगवान हूँ!
सब तेरे मंसूबे,
तकनीकें
सलाहियत तेरी,
बस टिकी है,
एक घुरी पे,
घूमती है जिसके सहारे
तेरी दुनिया,
और ज़मीं,
इस ज़मीं के पार
जब कुछ भी नही,
शून्य और अस्तित्व के परे,
मैं ही आसमान हूँ।
वक़्त से बढकर किसी का कोई अस्तित्व नहीं , कहते हैं न 'आदमी को चाहिए वक़्त से डर के रहे , कौन जाने किस घड़ी वक़्त का बदले मिजाज़ ...' 'मैं' टुकड़े टुकड़े में होता है, सामना करने की खातिर हम होना हाथ तो पकड़ता है...
ReplyDeleteसुनामी मिनटों में भयानक दृश्य लिए चीखता है- किसे बाँधने चले थे , किसके लिए क्या जोड़ा था , किसके लिए महल बनाये थे ! कृष्ण ने तो सब कह दिया था , फिर भी .....!!!
कुदरत के सामने सब बेबस है .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
इंसान हकीर है, हस्ती तो कुदरत ही है जो चंद लम्हों में ही अपनी ताकत का अहसास करवा देती है। ये ’मैं’ जो न महसूस करवा दे..
ReplyDeletekudarat se bara koyi nahi,
ReplyDeletekoyi nahi usse jyada balwan,
har dharm aur jati me mere bhai,
kudarat ne paaya Khuda ka Sthan.
sach kaha hai aapne khoobsoorat andaz mein
आप सब का शुक्रिया!हौसला अफ़्ज़ाई के लिये!जापान के हुतात्माओं के लिये ईश्वर से प्रार्थना!
ReplyDeleteSach kaha .. uski satta ke aage sabke main khatm ho jaate hain ...
ReplyDeleteBahut prabhaavi rachna hai ,...
प्रलय का तांडव देखकर मन दहल उठा!
ReplyDeleteदिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि!
मेरी शुभकामनायें भी साथ हैं। ईश्वर दया करे!
ReplyDeleteइंसान प्रकृति के साथ कितने ही खिलवाड़ कर डाले
ReplyDeleteवह चुपचाप झेल लेती है !
लेकिन इंसान उसका एक भी प्रत्युत्तर झेलने में
खुद को सक्षम नहीं बना पाया है अभी तक !!
japanese ke liye shradhaanvat.....
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