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Friday, May 20, 2011

गुलाब का फूल!(व्यापारी और’गुलाब प्रेमी’ क्षमा करें!)




आपने कभी सोचा है?

गुलाब का फूल कभी भी
जंगल मे नही खिलता,

क्यों भला?



वैसे गुलाब की एक किस्म होती तो है,
जिसे "जंगली" गुलाब कहते है!

पर वो भी कभी जंगल में नही होती,

गुलाब दरअसल बहुत ही,
संवेदनशील होता है!,

मैं वनस्पति विज्ञान का जानकार तो नहीं,
पर गुलाब की फ़ितरत जानता हूँ,

और यकीन मानिये, मैं आप सब से ज्यादा,
जंगलों मे घूमा हूँ!
(वन विभाग वाले माफ़ कर दें तों!)

दरअसल "गुलाब" को पता होता है, कि कौन, 

"कौन" है?


वो फ़र्क कर सकता है,
गुलकँद के व्यापारी ,
गुलाब जल के थोक विक्रेता 


और,

मासूम प्रेमी के बीच,

यदि ऐसा न होता तो,


"..................................
मुझे तोड लेना वन माली,
उस पथ पर देना तुम फ़ेंक,...
.......................................
.......................................
...."  
कभी न लिखी गई होती! 


मेरे एक कमरे वाले 
किराये के घर पर,
कभी आना,
"गुलाब" से मिलवाऊँगा! 





7 comments:

  1. हाथ मिलाईये साहब, पिछले दो महीने से हम भी किराये के एक कमरे में हैं।

    गुलाब भी नहीं है यहाँ तो।

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  2. मेरे एक कमरे वाले
    किराये के घर पर,
    कभी आना,
    "गुलाब" से मिलवाऊँगा! ...bahut kuch simta hai is gulaab me

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  3. बहुत सुंदर रचना ....कई सारे रंग लिए ...

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  4. बहुत ही सुन्दर लिखा है अपने इस मैं कमी निकलना मेरे बस की बात नहीं है क्यों की मैं तो खुद १ नया ब्लोगर हु
    बहुत दिनों से मैं ब्लॉग पे आया हु और फिर इसका मुझे खामियाजा भी भुगतना पड़ा क्यों की जब मैं खुद किसी के ब्लॉग पे नहीं गया तो दुसरे बंधू क्यों आयें गे इस के लिए मैं आप सब भाइयो और बहनों से माफ़ी मागता हु मेरे नहीं आने की भी १ वजह ये रही थी की ३१ मार्च के कुछ काम में में व्यस्त होने की वजह से नहीं आ पाया
    पर मैने अपने ब्लॉग पे बहुत सायरी पोस्ट पे पहले ही कर दी थी लेकिन आप भाइयो का सहयोग नहीं मिल पाने की वजह से मैं थोरा दुखी जरुर हुआ हु
    धन्यवाद्
    दिनेश पारीक
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
    http://vangaydinesh.blogspot.com/

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  5. मिलना है गुलाब से... ,क्या गुलाब का फूल है वो
    बस आ रहे है तेरे दर पे.....जहाँ गुलाब का फूल है वो ....

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  6. अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.

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