आपने कभी सोचा है?
गुलाब का फूल कभी भी
जंगल मे नही खिलता,
क्यों भला?
वैसे गुलाब की एक किस्म होती तो है,
जिसे "जंगली" गुलाब कहते है!
पर वो भी कभी जंगल में नही होती,
गुलाब दरअसल बहुत ही,
संवेदनशील होता है!,
मैं वनस्पति विज्ञान का जानकार तो नहीं,
पर गुलाब की फ़ितरत जानता हूँ,
और यकीन मानिये, मैं आप सब से ज्यादा,
जंगलों मे घूमा हूँ!
(वन विभाग वाले माफ़ कर दें तों!)
दरअसल "गुलाब" को पता होता है, कि कौन,
"कौन" है?
वो फ़र्क कर सकता है,
गुलकँद के व्यापारी ,
गुलाब जल के थोक विक्रेता
और,
मासूम प्रेमी के बीच,
यदि ऐसा न होता तो,
"..................................
मुझे तोड लेना वन माली,
उस पथ पर देना तुम फ़ेंक,...
.......................................
.......................................
...."
कभी न लिखी गई होती!
मेरे एक कमरे वाले
किराये के घर पर,
कभी आना,
"गुलाब" से मिलवाऊँगा!
हाथ मिलाईये साहब, पिछले दो महीने से हम भी किराये के एक कमरे में हैं।
ReplyDeleteगुलाब भी नहीं है यहाँ तो।
मेरे एक कमरे वाले
ReplyDeleteकिराये के घर पर,
कभी आना,
"गुलाब" से मिलवाऊँगा! ...bahut kuch simta hai is gulaab me
बहुत सुन्दर और गुलाबी रचना!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ....कई सारे रंग लिए ...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लिखा है अपने इस मैं कमी निकलना मेरे बस की बात नहीं है क्यों की मैं तो खुद १ नया ब्लोगर हु
ReplyDeleteबहुत दिनों से मैं ब्लॉग पे आया हु और फिर इसका मुझे खामियाजा भी भुगतना पड़ा क्यों की जब मैं खुद किसी के ब्लॉग पे नहीं गया तो दुसरे बंधू क्यों आयें गे इस के लिए मैं आप सब भाइयो और बहनों से माफ़ी मागता हु मेरे नहीं आने की भी १ वजह ये रही थी की ३१ मार्च के कुछ काम में में व्यस्त होने की वजह से नहीं आ पाया
पर मैने अपने ब्लॉग पे बहुत सायरी पोस्ट पे पहले ही कर दी थी लेकिन आप भाइयो का सहयोग नहीं मिल पाने की वजह से मैं थोरा दुखी जरुर हुआ हु
धन्यवाद्
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/
मिलना है गुलाब से... ,क्या गुलाब का फूल है वो
ReplyDeleteबस आ रहे है तेरे दर पे.....जहाँ गुलाब का फूल है वो ....
अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
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