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Friday, August 20, 2010
खुद की मज़ार!
मैं तेरे दर से ऐसे गुज़रा हूं,
मेरी खुद की, मज़ार हो जैसे!
वो मेरे ख्वाब में यूं आता है,
मुझसे ,बेइन्तिहा प्यार हो जैसे!
अपनी हिचकी से ये गुमान हुआ,
दिल तेरा बेकरार हो जैसे!
परिंद आये तो दिल बहल गया,
खिज़ां में भी, बहार हो जैसे!
दुश्मनो ने यूं तेरा नाम लिया,
तू भी उनमें, शुमार हो जैसे!
कातिल है,लहू है खंज़र पे,
मुसकुराता है,कि यार हो जैसे!
Wednesday, May 20, 2009
वजह जीने की!
अन्धेरा इस कदर काला नहीं था,
उफ़्क पे झूठं का सूरज कहीं उग आया होगा।
चश्म मेरे तो कब के नमीं गवां बैठे,
लहू ज़िगर का अश्क बन के उभर आया होगा।
तब्ब्सुम मेरे होठों पे? क्या हैरत की बात है?
खुशी नही कोई दर्द दिल में उतर आया होगा।
मै ना जाता दरे दुशमन पे कसीदा पढने,
दोस्त बनके उसने मुझे धोखे से बुलाया होगा।
खुद्कुशी करने वालों को भी आओ माफ़ हम करदें,
जीते रहने का कोई रस्ता न नज़र आया होगा।
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