ये सब हैं चाहने वाले!और आप?
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Friday, December 31, 2010
गुफ़्तगू बे वजह की!
ज़रा कम कर लो,
इस लौ को,
उजाले हसीँ हैं,बहुत!
मोहब्बतें,
इम्तिहान लेती हैं
मगर!
पहाडी दरिया का किनारा,
खूबसूरत है मगर,
फ़िसलने पत्थर पे
जानलेवा
न हो कहीं!
मैं नही माज़ी,
मुस्तकबिल भी नही,
रास्ते अक्सर
तलाशा करते हैं
गुमशुदा को!मगर!
किस्मतें जब हार कर,
घुटने टिका दे,
दर्द साया बन के,
आता है तभी!
Saturday, July 11, 2009
जाने क्या?
शमा जले अन्धेरे में ये मज़बूरी है.
दर्द मज़लूम का न गर परेशान करे,
ज़िन्दगी इंसान की अधूरी है.
ज़रूरी काम छोड के इबादत की?
समझ लो खुदा से अभी दूरी है.
सच कडवा लगे तो मैं क्या करूं,
इसको कहना बडा ज़रूरी है.
Monday, May 18, 2009
दर्द की मिकदार को तौल कर देखें
जहाँ से दर्द की मिक़दार क़म हो, ये करना होगा.
मसीहा कौन है ,और कौन यहाँ रह्बर है,
हर इंसान को इस राह पे, अकेले ही चलना होगा.
तेज़ हवाएँ भी हैं सर्द ,और अंधेरा भी घना,
शमा चाहे के नही उसे हर हाल में जलना होगा.
Sunday, January 25, 2009
दर्द की मिक़दार
जहाँ से दर्द की मिक़दार क़म हो, ये करना होगा.
मसीहा कौन है ,और कौन यहाँ रह्बर है,
हर इंसान को इस राह पे, अकेले ही चलना होगा.
तेज़ हवाएँ भी हैं सर्द ,और अंधेरा भी घना,
शमा चाहे के नही उसे हर हाल में जलना होगा.
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मिक़दार:Quantity
रह्बर: Companion
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