ये सब हैं चाहने वाले!और आप?

Saturday, July 11, 2009

जाने क्या?


तमाम शहर रौशन हो, ये नही होगा,
शमा जले अन्धेरे में ये मज़बूरी है.

दर्द मज़लूम का न गर परेशान करे,
ज़िन्दगी इंसान की अधूरी है.

ज़रूरी काम छोड के इबादत की?
समझ लो खुदा से अभी दूरी है.

सच कडवा लगे तो मैं क्या करूं,
इसको कहना बडा ज़रूरी है.

12 comments:

  1. सच कडवा लगे तो मैं क्या करूं,
    इसको कहना बडा ज़रूरी है.

    bolte rahen ham sun rahe hain...

    ReplyDelete
  2. सच कडवा लगे तो मैं क्या करूं,
    इसको कहना बडा ज़रूरी है

    Ye baat bhi utni hi sacchee hai jitni aapki rachna...... lajawaab likha hai...

    ReplyDelete
  3. पहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ की आप मेरे ब्लॉग पर आए और सुंदर टिपण्णी दिए! मेरे दूसरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
    मुझे आपका ब्लॉग बहत अच्छा लगा! अब तो मैं आपका फोल्लोवेर बन गई हूँ इसलिए आती रहूंगी! बहुत सुंदर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!

    ReplyDelete
  4. दर्द मज़लूम का न गर परेशान करे,
    ज़िन्दगी इंसान की अधूरी है.

    बहुत उम्दा

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सुन्दर गज़ल.बधाई.

    ReplyDelete
  6. दर्द मज़लूम का न गर परेशान करे,
    ज़िन्दगी इंसान की अधूरी है.

    ज़रूरी काम छोड के इबादत की?
    समझ लो खुदा से अभी दूरी है.

    bahut hi pyari jhakjhodti hui rachna
    andaze bayan kamaal ka.badhai!!

    ReplyDelete
  7. खुदा दूर है, मगर आपकी कविता दिल के करीब...

    ReplyDelete
  8. सभी प्रबुध्द पाठकों को तहे दिल से शुक्रिया."सच में" के प्रति प्रेम बनाये रखें.

    ReplyDelete
  9. सच कडवा लगे तो मैं क्या करूं,
    इसको कहना बडा ज़रूरी है.

    sahi farmaya aapne...

    ReplyDelete
  10. bhut bhut bhut khoooooosurat,sach mein,aapne kya khub likha , har baar muh se wah wah nikla aur nikli dua, aapke liye.

    "sach to sach hai,aapka likha acha laga ,yeh kehna bhi zaroori hai,"
    www.likhoapnavichar.blogspot.com

    ReplyDelete
  11. "Kavita" पर ’जाने क्या!’ को मिली प्रशन्सायें.

    M VERMA said...
    सच कडवा लगे तो मैं क्या करूं,
    इसको कहना बडा ज़रूरी है.
    ============
    सच जब कडवा लगने लगे तो समझो असर हो रहा है.

    July 11, 2009 4:51 PM


    raj said...
    sach kadwa lage to kya karu?....har shabad har pankti dil chhoo leti hai....

    July 12, 2009 12:19 AM


    वन्दना अवस्थी दुबे said...
    क्या बात है.हमेशा की तरह...

    July 12, 2009 1:12 AM


    Shama said...
    "...खुदासे अभी दूरी है...!"बेहद सच कहा...! हम अपने कर्तव्य, जो साफ़ नज़र आते हैं, किसी 'ritual' को जब अधिक महत्त्व देने लगते हैं, तो ये दूरी बना लेते हैं...
    लेकिन रचनाका हर शब्द, हर पंक्ती,अपने आपमें मुकम्मल है...!

    July 12, 2009 1:22 AM


    ktheLeo said...
    इन तमाम तारीफ़ करने वाले सुधी पाठकों से नम्र निवेदन है कि "सच में" पर अपनी गरिमामयी उपस्थिति अवश्य दर्ज़ करायें.हौसला अफ़जाई तो होती ही है,अच्छा लगता है.If you all(including 'Shamaa Ji)' follow my Blogg (www.sachmein.blogspot.com) I will feel honored.
    रचना को सराहने के लिये आप सब का तहे दिल से शुक्रिया!

    July 12, 2009 1:43 AM


    Pradeep Kumar said...
    ज़रूरी काम छोड के इबादत की?
    समझ लो खुदा से अभी दूरी है.


    सच कडवा लगे तो मैं क्या करूं,
    इसको कहना बडा ज़रूरी है.

    bahut khoob !!!
    ek muddat ke baad blog ki dunia main aayaa hoon to ise padhkar pataa chalaa ki kaam main busy rahakar in dinon main kis cheej se mehroom tha .

    July 12, 2009 11:51 PM


    नीरज कुमार said...
    शमा मैम,
    अच्छी रचना है, सुन्दर भावाभ्यक्ति है...
    आजकल आप मेरे ब्लॉग पर नहीं आती ..नाराज़ हैं या व्यस्त हैं कार्यों में...

    July 13, 2009 1:15 AM


    Shama said...
    Ye rachna leo ji kee hai..unke saath apna 'kavita' blog sanjha kar rahee hun...unkee shukrguzaar hun,ki, itnee sundar rachnayen pesh kar,is blog me chaar chaand laga dete hain..!

    July 13, 2009 2:20 AM


    ktheLeo said...
    You are welcome, Madam as always!

    July 13, 2009 4:38 AM


    'अदा' said...
    तमाम शहर रौशन हो, ये नही होगा,
    शमा जले अन्धेरे में ये उसकी मज़बूरी है.
    bahut khoob...

    सच कडवा लगे तो मैं क्या करूं,
    इसको कहना बडा ज़रूरी है.

    aji aap be-dhadak kahen..
    ham hain na, sun rahen hain..
    jabardast likha hai aapne..

    July 13, 2009 6:15 AM


    ‘नज़र’ said...
    बहुत ही उम्दा
    ---
    श्री युक्तेश्वर गिरि के चार युग

    July 13, 2009 11:37 AM

    ReplyDelete

Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me!
बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.