जर्रजर तो हो गया है, मगर आलीशान है.
दुनियाँ के मरहले है,क्या सुलझे है आज तक,
इंसान है हम लोग , अत: परेशान है,
कुछ लोग तिज़ारत में यूँ माहिर हैं होगये,
घर उनके न अब घर रहे, जैसे दुकान हैं.
पूछा जो मैने आप का ईमान क्या हुआ?
आया जवाब, आप बत्तमिzओ बेईमान हैं.
हंस हंस के जला देते हैं, रिश्तों की लाश को,
ये लोग हैं कि ,चलते फिरते श्मशान हैं.
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मरहले:Affairs.
तिज़ारत:Art/Science of business.
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aise hee lage rahe bhaiyaa,to bahut door tak pahunchenge.
ReplyDeleteyahaan to baasi haisab, wahaan hoor tak pahunchenge.
AMAL
अमाँ क्यों अँग्रेज़ी चच्च्च........!
ReplyDeleteबाक़ी,शुक़रिया!
पहुँचेंगे कहीं नही,क्योंकि :
"जितने मेरे हमसफ़र थे अपनी मंज़िल को गये,
मैं था सूनी राह थी और एक सन्नाटा रहा .
तुम अंधेरे की तरफ कुछ इस क़दर बढ़ते गये,
रौशनी मैं देखने का हुनर भी जाता रहा."
हंस हंस के जला देते हैं, रिश्तों की लाश को,
ReplyDeleteये लोग हैं कि ,चलते फिरते श्मशान हैं.
kya baat hai.... kya bat hai....
kya khoob pehchan ki hai aapne insan ki
हूज़ूर -ए- आली बेनाम जी,
ReplyDeleteहुस्न-ए-नज़र है आपका.
हंस हंस के जला देते हैं, रिश्तों की लाश को,
ReplyDeleteये लोग हैं कि ,चलते फिरते श्मशान हैं.
waah waah,
zabardast..
is sher par to mera poora blog kurbaan hai (bas kisi se kahiyega mat, nahi to meri dookan band ho jayegi)..
bahut hi sahi aur sacchi baat kahi hai aapne...
dil bas khush ho gaya.
अदा जी,
ReplyDeleteआपकी लेखन की ’अदा’ के तो पहले से कायल थे,टिपप्णी करने की ’अदा’ तो उससे भी आगे.
आशा है ये ’अदा’ रहेगी ’सदा’ न कि ’यदा-कदा’.
शुक्रिया,हौसला अफ़ज़ाई का. ’सच में’ पर अपनी नज़रे करम बनाये रखें.
दिल है कि मेरा जैसे एक खाली मक़ान है,
ReplyDeleteजर्रजर तो हो गया है, मगर आलीशान है.
bahut koob -- bahut khoobsurat