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Wednesday, January 14, 2009

रास्तों का सच!


एक शमा की सब वफाएं,जब हवा से हो गयी.
बे चरांगा रास्तों का लुत्फ़ ही जाता रहा.


तुम अंधेरे की तरफ कुछ इस क़दर बढ़ते गये,
रौशनी मैं देखने का हुनर भी जाता रहा.


(On 25 of Jan 2009) दिल करता है कि इस शेर को कुछ ऐसे लिखूं:

तुम सितारों की चमक में,कुछ इस क़दर मसरूफ़ थे,
के रोशनी में देखने का हुनर ही जाता रहा.


जितने मेरे हमसफ़र थे अपनी मंज़िल को गये,
मैं था, सूनी राह थी, और एक सन्नाटा रहा . 


हाल-ए-मरीज़े इश्क़ का मैं क्या करूँ तुमसे बयाँ,
हर दवा का,हर दुआ का असर ही जाता रहा.

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लुत्फ़:Fun

हुनर:The art/ Capability of..

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7 comments:

  1. बहुत सुंदर…आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  2. ह्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म...........आपका ख्याल अच्छा है भाई ........!!

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  3. ह्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म...........आपका ख्याल अच्छा है भाई ........!!

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  4. जितने मेरे हमसफ़र थे अपनी मंज़िल को गये,
    मैं था, सूनी राह थी, और एक सन्नाटा रहा .

    Wah.... lazeez
    Gulzar sahab ki uple wali kavita zaroor padhen

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  5. very beautiful thoughts, will help those who are seeking direction for themselves ------- have restricted to english ------ hindi mein type karna nahi atta hai,

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  6. मैं नही जानता था के ' रस्ते का माल' इतना पसंद किया जाएगा.
    आप सभी के स्नेह का हृदय से धन्यवाद.

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