अक्स अब धुंधला नज़र आने लगा है.
वख्त अब थोडा सा ही बचा है,
सूरज पश्चिम की तरफ़ जाने लगा है.
दुश्मनो को आओ अब हम माफ़ कर दें,
दोस्त मेरा, मेरे घर आने लगा है.
क्यों भला शैतान पाये बद्दुयाएं,
फ़रिस्ता भी तो साज़िशें रचाने लगा है.
क्यों भला हम रिन्द को तोहमत लगाये,
साकी भी तो जाम छ्लकाने लगा है.
बाढ सूखे से तुम्हें क्या लेना देना,
SENSEX तो अब ऊपर जाने लगा है.
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"सच में" के सुधी पाठकों और अपने चाहने वालों से कुछ समय के लिये ,इस माध्यम (Blog 'sachmein') पर मुखातिब नहीं हो पाऊंगा.आशा है आप सब की दुआएं जल्द ही मुझे वापस आने के लिये हालात बना देंगी.तब तक के लिये,take care & Happy Bloging!
_Ktheleo