लोग बस गये जाकर वीराने में,
सूना घर हूँ मैं बस्ती में रह जाउँगा।
तुम न आओगे चलों यूँ ही सही,
याद में तो मैं तुम्हारी आऊँगा।
पी चुका हूँ ज़हर मैं तन्हाई का,
पर चारागर कहता है,के बच जाउँगा।
कह दिया तुमने जो तुम्हें अच्छा लगा,
सच बहुत कडवा है,मैं न कह पाउँगा।
तुमको लगता है कि मैं बरबाद हूँ,
आइना रोज़े महशर तुम्हें दिखलाऊँगा।