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Monday, June 29, 2009

क्या ये सच है!

नया कुछ भी नहीं,ज़िन्दगी हस्बेमामूल चलती है.
लौ ख्यालों की है रौशन ,मोम उम्र की पिघलती है.

मै नहीं चाहता दुनियां से कुछ भी कहना,
जेहन में ,क्यों नदी अरमानों की मचलती है.

मैने चाहा ही नही ,तुझको कभी याद करूं,
बर्फ़ यादों की ये, क्यों नही पिघलती है.

सर्द यादों को तो तेरी,मै कब का दफ़न कर आया,
तपिश गमों की लहू बन के, मेरी रगो में फ़िसलती है.

मै तो गुज़र जाऊगां बरसात के मौसम की तरह,
काई मोहब्त की तो, दिल पे बाद में उभरती हैं.

8 comments:

  1. "मै तो गुज़र जाऊगां बरसात के मौसम की तरह,
    काई मोहब्त की तो, दिल पे बाद में उभरती हैं"
    लगे रहो, सार्थक प्रयास है।

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  2. मैने चाहा ही नही ,तुझको कभी याद करूं,
    बर्फ़ यादों की ये, क्यों नही पिघलती है.

    वाह जी बहुत ख़ूबसूरत बात है

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  3. आप लोगों का हुस्ने नज़र है,कि वख्त दिया और तारीफ़ की.अन्तरमन से शुक्रिया.
    "सच में" पर स्नेह बनाये रखें.
    आभार और आदर सहित.

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  4. बहुत खूब

    वीनस केसरी

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  5. Maine kharab tabiyat ke karan ,kuchh dinon se blog khola nahee...
    Bade dinon baad aapki kavita mere blog pe dekhi....comment waheen dena chah rahee thee, lekin mera comment box hee gayab hai...!
    Behtareen rachna hai...!Iske alawa aur kuchh alfaaz nahee..(Talluqat kaa sach!)
    Jis rachnake tehet comment de raheen hun, uske liye bhee mere paas alfaaz nahee..aksar aapki rachnayen padhke mai nishabd ho jaatee hun..

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  6. शमा जी आप का और सभी प्रबुद्ध पाठकों का शुक्रिया,मयंक जी आप को तो मै,कितना भी धन्यवाद दूं कम है,आप ने मेरी एक भी रचना miss नही करी और आप का स्नेह मेरे लिये अमूल्य है.
    शमा जी फ़िर कहुंगा आप का हुस्ने नज़र है,मै तो आम दिल की बात कहता हूं.

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  7. नया कुछ भी नहीं,ज़िन्दगी हस्बेमामूल चलती है.
    लौ ख्यालों की है रौशन ,मोम उम्र की पिघलती है

    आपके अंदाज़-इ-बयां के क्या कहने लब्ज़ सिमट जाते हैं
    नज़रें सोचने लगती हैं हम बोल नहीं पाते हैं (स्वरचित)

    'नज़र' साहब बहुत ही खूबसूरत लिखते हैं आप ...

    ऐसे ही लिखते रहिये, हमने आना शुरू कर दिया है, और आते ही रहेंगे

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  8. bahut khoob.....
    shandar rachna......
    badhai.....

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