बहुत पहले एक गज़ल कही थी,
"मैं तुम्हारा नहीं हूँ ,ये बात तो मैं भी जानता हूँ.
मेरी तकलीफ ये है कि, ये बात तुम कहते क्यों हो." Link of the same is given below:
उसी ख्याल पे चंद अंदाज़ और देखें:
आंखें हमारी नम.
होठ पे मुस्कान तेरे,
दिल में हमारे गम.
दुश्मन नहीं हैं हम तुम्हारे,
मान लो सनम.
महवे आराइश रहो तुम,
हम करे मातम.
फूल लाना तुर्बत पे मेरी,
ज़िन्दगी है कम.
ज़र्रा हूं मै,तुम सितारा,
कैसे हो संगम.
बेहतरीन कविता,
ReplyDeleteसुन्दर भाव।
बधाई।
sundar bhaavnayein...
ReplyDeleteकह चुके तुम बात अपनी =२१२२, 2122
ReplyDeleteआँखे हमारी नाम = २२१२, २२
???
आपकी गजल में बहर का आभाव बहुत खटकता है
बहर में रह कर लिखना तो बहुत ही आसान है ख़ास कर आपके लिए क्योकि आपकी कहन बहुत सुन्दर है
वीनस केसरी
(आशा करता हूँ आप टिप्पडी को अन्यथा नहीं लेंगे )
वीनस,
ReplyDeleteसब से पहले टिप्पणी को अन्यथा लेता तो comment box को disable कर लगाना पडता.
क्या कभी ऎसा देखा है, कि खाने का एक कौर खाते ही कोई दौड कर जाये और खाने की caloric value का assessment कराये बजाय उसके स्वाद का मज़ा लेने के.
मेरी रचनाये पहाडी नदी की तरह है,उन्हे bottled mineral water से मत compare करो.क्यों कि कभी पहाडी नदी किनारे जाकर देखो, जो छीटें चे्हेरे को भिगो कर जायेगें और मज़ा देगें.
पानी की १०-२० बोतलों का पानी वो ताज़गी न दे पायेगा.
Any way I will try to follow the advice,however it is difficult for me because,दरसल मै कविता या गज़ल लिखता नहीं, सिर्फ़ सच बात दिल से कहता हूं,मै नही जा्नता ये कैसे कविता में बदल जाती हैं!
bahut sundar boss.
ReplyDeleteis kavita ko padhkar dil ek alag se ahsaas me chala gaya .. behatreen lekhan . yun hi likhte rahe ...
badhai ...
dhanywad.
vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
कह चुके तुम बात अपनी,
ReplyDeleteआंखें हमारी नम...khoobsurat...