मुझे भी , झंझटों से छूटना था.
तमाम अक्स धुन्धले से नज़र आने लगे थे,
आईना था पुराना, टूटना था.
बात सीधी थी, मगर कह्ता मै कैसे,
कहता या न कहता, दिल तो टूटना था.
मैं लाया फूल ,तुम नाराज़ ही थे,
मैं लाता चांद, तुम्हें तो रूठना था.
याद तुमको अगर आती भी मेरी,
था दरिया का किनारा , छूटना था.
ताल्लुकात को यही तो सच है।
ReplyDeleteसच को आइना दिखाती रचना।
बधाई।
मैं लाया फूल ,तुम नाराज़ ही थे,
ReplyDeleteमैं लाता चांद, तुम्हें तो रूठना था....sahi baat hai jise ruthe rahna hai uske liye kuchh bhi le aaye aap...