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Monday, June 15, 2009

ताल्लुकात का सच!


मुझसे कह्ते तो सही ,जो रूठना था,
मुझे भी , झंझटों से छूटना था.

तमाम अक्स धुन्धले से नज़र आने लगे थे,
आईना था पुराना, टूटना था.

बात सीधी थी, मगर कह्ता मै कैसे,
कहता या न कहता, दिल तो टूटना था.

मैं लाया फूल ,तुम नाराज़ ही थे,
मैं लाता चांद, तुम्हें तो रूठना था.

याद तुमको अगर आती भी मेरी,
था दरिया का किनारा , छूटना था.

2 comments:

  1. ताल्लुकात को यही तो सच है।
    सच को आइना दिखाती रचना।
    बधाई।

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  2. मैं लाया फूल ,तुम नाराज़ ही थे,
    मैं लाता चांद, तुम्हें तो रूठना था....sahi baat hai jise ruthe rahna hai uske liye kuchh bhi le aaye aap...

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