वीनस केसरी की नज़र है ये नज़्म.उनके एक Blog ’आते हुये लोग’ http://venuskesari.blogspot.com/2009/04/blog-post_24.html पर प्रस्तुत एक रचना
को पढ कर ये विचार विन्यास उत्पन्न हुया.आप सब भी आन्न्द लें!
पढे कोई.
मेरी किस्मत,
गढे कोई.
मै सफ़र हूं,
चले कोई.
मै अकेला,
मिले कोई.
मै अन्धेरा,
जले कोई.
मैं हूं सन्दल,
मले कोई.
मै नहीं हूं,
कहे कोई.
महोदय,
ReplyDelete(वीनस केशरी जी की नज़र है ये नज़्म,)
आज आपकी पोस्ट में ये लाइन पढ़ कर अनायास हाँथ की खटर पटर रुक गई और इस लाइन का सामान्य अर्थ निकालना चाहा जब असफल हुआ तो गूढ़ अर्थों की और बाधा मगर उसमे भी असफलता हाँथ लगी तो सोंचा आपसे ही पूछ लू
क्योकि मुझे जहां तक याद है मैंने आज तक आपके ब्लॉग पर केवल एक टिप्पडी की है जी ये है
''बहुत सुन्दर गजल कही है
समर्थक लिंक लगा दीजिये आपके पास आने में आसानी होगी
वीनस केसरी''
आपसे निवेदन है मुझे केवल वीनस कह कर संबोधित करिए न की "वीनस जी"
जहाँ तक नज़्म का सवाल है आपके शेरों में आपने पहले मिसरे का रुक्न २१२२ और दुसरे का १२२२ रखा है मैं तो ये भी नहीं जानता की ये सही है या नहीं
आपने तो मुझे चक्कर में डाल दिया
वीनस केसरी
कहने का सलीका बेहद भाया....
ReplyDeleteकुछ इतना कि बहरो-वजन की तरफ ध्यान ही नहीं जा रहा।
वीनस जी को नजर करने का मंतव्य शाय्द उनकी ऐसी ही एक ग़ज़ल के लिये है...
छोटी बहर की वीनस केशरी जी की गजल
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है।
धन्यवाद।
भाई वीनस,
ReplyDeleteचक्कर न खाओ.
आप के Blog पर एक सुन्दर रचना पढी थी, तुरन्त ही जो विचार शब्दो के रूप में बन पडे,ये रचना थी.
अतेव लगा कि रचना आप से मुखातिब हो तो बेहतर है.
और एक दूसरे को छो्टे छोटे सम्मान देते रहना शायद कोई बुरी बात नही.
टिप्पणी एक करो या कई,लिखते रहिये,पढते रहिये.
संशय दूर करने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteवीनस केसरी
sundar bhav
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