रूठना वो तेरा ऐसे,
कहीं कुछ टूट गया हो जैसे.
बहुत बेरंग हैं आज शाम के रंग,
इंद्रधनुष टूट गया हो जैसे.
वो मेरे अरमान तमाम बिखरे हुए,
बात बहुत सीधी थी और कह भी दी
कहते कहते यूँ तेरा रुक जाना,
कहीं कुछ टूट गया हो जैसे.
बहुत बेरंग हैं आज शाम के रंग,
इंद्रधनुष टूट गया हो जैसे.
वो मेरे अरमान तमाम बिखरे हुए,
शीशा कोई छूट गया हो जैसे.
बात बहुत सीधी थी और कह भी दी
तू मगर भूल गया हो जैसे.
कहते कहते यूँ तेरा रुक जाना,
साजिंदा रूठ गया हो जैसे.
नाजुक भाव से सजी कविता.............बहुत ही खुब
ReplyDeleteआप का स्वागत है, धन्यवाद!
ReplyDeleteआपने वादा किया था "बहर में लिखने का प्रयास करूंगा" मगर वो प्रयास कही दिखाई नहीं दे रहा :(
ReplyDeleteवीनस केसरी
Nice Poem.
ReplyDeletecongretulation.
प्रिय वीनस,
ReplyDeleteअब इसके सिवा क्या कहूं के:
’वो मेरे लफ़्ज़ पकडते हैं,जज़बातों पे नहीं जाते,
मैं करूं क्या के मुझे अफ़साने बनाने नहीं आते.’
Ye rachna pahle padhee to thee,lekin comment post nahee hua tha...!
ReplyDeleteAapki behtareen rachnaon me se ye ek hai...!
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