उफ़्फ़क पे जाके शायद, मिल जाते,
मैं अगर आसमां, और तू ज़मीं होता
इस दुनियां में सब मुसाफ़िर हैं,
कोई मुस्तकिल मकीं नही होता.
सौ बार आईना देख आया,
फ़िर भी क्यूं खुद पर यकीं नही होता.
दिल के टुकडे बहुत हुये होगें,
यूं ही कोई गमनशीं नहीं होता!
ये सब हैं चाहने वाले!और आप?
Monday, July 27, 2009
4 comments:
Please feel free to express your true feelings about the 'Post' you just read. "Anonymous" Pl Excuse Me!
बेहिचक अपने विचारों को शब्द दें! आप की आलोचना ही मेरी रचना को निखार देगी!आपका comment न करना एक मायूसी सी देता है,लगता है रचना मै कुछ भी पढने योग्य नहीं है.So please do comment,it just takes few moments but my effort is blessed.
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उफ़्फ़क पे जाके शायद, मिल जाते,
ReplyDeleteमैं अगर आसमां, और तू ज़मीं होता
इस दुनियां में सब मुसाफ़िर हैं,
कोई मुस्तकिल मकीं नही होता.
सौ बार आईना देख आया,
फ़िर भी क्यूं खुद पर यकीं नही होता.
दिल के टुकडे बहुत हुये होगें,
यूं ही कोई गमनशीं नहीं होता!
sabhi sher ek se badh kar ek..
waah waah...
aur ab mulahija farmaiye...
ग़मों का जायज़ा गर लेना हो तो देख
मेरा दामन अश्कों से तर है के नहीं
ज़ख्मों को मेरे कब तक गिनते रहोगे
तेरी नज़र में तेरी शरर है के नहीं
अपना दीन-ओ-ईमान मैंने लुटा दिया
देखूं उसपर कोई असर है के नहीं
जंगल की आग ने सबकुछ जला दिया
जाने उसे मेरे घर की खबर है के नहीं
अंधेरों से बावस्ता हो गयी ज़िन्दगी
इन अंधेरों की कोई सहर है के नहीं
मैंने इस रचनापे पहले भी दो बार टिप्पणी दी थी ...!
ReplyDelete"उफ़्फ़क़ ' क्षितिज को कहते हैं , आज समझ में आया ..." ये लिखा था ..पता नही वो टिप्पणी क्यों अवतरित नही हुई ?
रचना हमेशा की तरह, निहायत खूबसूरत है...आपकी रचनायों पे मुझे 'सच' में टिप्पणी देनी नही आती...!
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://kshama-kahanee.blogspot.com
मुझे ये गज़ल खास लगी क्योंकी मैनें भी ऐसा ही कुछ अपनी कविता में महसूस किया था.
ReplyDeleteजैसे ये धरती आकाश
वैसे हम भी होते काश
आपकी शायरी मुझे पसन्द है ,ये कहना obvious है.Will keep coming back.
I am putting you up on my blogroll so i don't miss out for a long time.
Thanks! Aahang, for appreciation!
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