मेरी तकरीबन हर रचना का,
एक "किरदार" है,
वो बहुत ही असरदार है,
पर इतना बेपरवाह ,
कि जानता तक नहीं,
कि 'साहित्य' लिखा जा रहा है,
'उस पर'
मेरे लिये भी अच्छा है,
क्यों कि जिस दिन,
वो जान गया कि,
मैं लिख देता हूं,
'उस पर'
मेरी रचनाओं में सिर्फ़
शब्द ही रह जायेगें।
क्यों कि सारे भाव तो ,
'वो' अपने साथ लेकर जायेगा ना!
शर्माकर?
या शायद,
घबराकर!!!!
वाकई में किरदार बड़ी चीज है।
ReplyDeleteपरन्तु रचना के साथ-साथ जीवन
में भी होना चाहिए।
बढ़िया पोस्ट।
बधाई!
आज देर तक आपकी चंद रचनाएँ पढ़ती रही ...क्या कहूँ ?
ReplyDeleteकल शाम एक रचना पोस्ट की .... उसके पूर्व एक अन्य रचना पोस्ट की थी ," दिया और बाती "...
"कटघरे में ईमान खड़ा ..." इसे लिखा था..मानो मुझे कुछ भविष्य का एहसास हो रहा हो... क्या यही 'सच 'है ...?
मैंने पहलेभी कहा था , कई बार किसी घटना का मुझे आभास हो जाता है ..."कटघरे में ...", इसी तरह लिखी और एकेक शब्द सही हुआ ...
"दिया और बाती ", इस रचना का पूर भाग 4 साल पहले लिखा...उत्तरार्ध चंद माह पहले......! जब हु-ब-हु वही हुआ...
मै अब अपने आप से डरने लगी हूँ..आप निडरता से 'सच' लिखते हैं...और मैं, अनचाहे लिख देती हूँ, जो 'सच' में तबदील हो जाता है..
Yahan mera 'kirdaar' kya hai? Ek kathputlee, jise 'samay' nachata hai?
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://lalitlekh.blogspot.com
http://shama-baagwaanee.blogspot.com
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http://dharohar-thelightbyalonelypath.blogspot.com
आप की टिप्पणी से लगता है कि आप एक भावनात्मक उठा पटक के दौर से गुज़र रहीं है.ऐसे समय में शांत भाव से दूसरे व्यक्ति की परिस्थितियों का आंकलन बिना judgmental हुये करना उचित होता है.
ReplyDeleteऔर जहां तक "सच" की बात है, इस जीवन में कोई भी सच अपने आप में पूर्ण और अन्तिम नहीं होता.सिवाय ईश्वर और उसकी सत्ता के,सारे के सारे सच हमारे perceptions के प्रतिबिम्ब मात्र हैं.हमारा अपना मन ही उन्हें सच या झूठं मान कर हमें या तो दिलासा देता रह्ता है,या बहकाता रहता है.
परिवर्तन जीवन का सच है,"सच" का परिवर्तित होते रहना भी सच है.
आदर और शुभकामनाओं सहित!
I like poetry which is like a conversation.And this is a great example of that.
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