खाक कहता है,तू,उसे जो सरमाया है.
क्यों कर सजे तब्बसुम अब लब पर तेरे,
संगदिल से तू ने क्यूं कर दिल लगाया है.
कोशिश भी न करना मसर्रत-ए-दीदार की,
कभी था तेरा,वो बुते हुश्न अब पराया है.
ज़िक्र-ए-वफ़ा भी मेरा क्यूं गुनाह हो गया,
उसकी बेवाफ़ाई को,मैने जां दे के भी निभाया है.
बहुत खूब...!
ReplyDeleteउर्दू अल्फाज का इस्तेमाल बड़ी साफगोई से किया है।
मुबारकवाद!
बहुत सुन्दर ख़्यालात
ReplyDelete--------------
1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम
3. तकनीक दृष्टा
कोशिश भी न करना मसर्रत-ए-दीदार की,
ReplyDeleteकभी था तेरा,वो बुते हुश्न अब पराया है.
bahut khoob..
subhan allaah...
aur kuch meri baat:
मरहम धरने की साजिश रचा
एक घाव और उसने लगाया है
महबूब नहीं खौफ़-ऐ-रक़ीब हूँ मैं
मेरे ज़ख्मों से मुझको सजाया है
Atyant sundar rachna.
ReplyDeletehttp://kshama-bikharesitare.blogspot.com/
Oh..Leoji,
ReplyDeleteIt would have been so very nice..! We seem to be crossing..am leaving for Pune tomorrow..!My misfortune,entirely!I live in Pune...!
Thanks a lot for your comment on 'kavita'!
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Aapki ye rachna gazabkee sundar hai...kahna zarooree nahee...! Haath kangan ko aarsee kaise dikhayen?