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Monday, July 27, 2009

गर्द-ए-सफ़र-ए- इश्क!

गर्द-ए-सफ़र-ए-इश्क वो लाया है,
खाक कहता है,तू,उसे जो सरमाया है.

क्यों कर सजे तब्बसुम अब लब पर तेरे,
संगदिल से तू ने क्यूं कर दिल लगाया है.

कोशिश भी न करना मसर्रत-ए-दीदार की,
कभी था तेरा,वो बुते हुश्न अब पराया है.

ज़िक्र-ए-वफ़ा भी मेरा क्यूं गुनाह हो गया,
उसकी बेवाफ़ाई को,मैने जां दे के भी निभाया है.

5 comments:

  1. बहुत खूब...!
    उर्दू अल्फाज का इस्तेमाल बड़ी साफगोई से किया है।
    मुबारकवाद!

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  2. कोशिश भी न करना मसर्रत-ए-दीदार की,
    कभी था तेरा,वो बुते हुश्न अब पराया है.
    bahut khoob..
    subhan allaah...
    aur kuch meri baat:
    मरहम धरने की साजिश रचा
    एक घाव और उसने लगाया है

    महबूब नहीं खौफ़-ऐ-रक़ीब हूँ मैं
    मेरे ज़ख्मों से मुझको सजाया है

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  3. Atyant sundar rachna.

    http://kshama-bikharesitare.blogspot.com/

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  4. Oh..Leoji,
    It would have been so very nice..! We seem to be crossing..am leaving for Pune tomorrow..!My misfortune,entirely!I live in Pune...!

    Thanks a lot for your comment on 'kavita'!

    http://shamasansmaran.blogspot.com

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

    http://shama-kahanee.blogspot.com

    http://shama-baagwaanee.blogspot.com

    Aapki ye rachna gazabkee sundar hai...kahna zarooree nahee...! Haath kangan ko aarsee kaise dikhayen?

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