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Wednesday, July 22, 2009

रास्तों का सच!


एक शमा की सब वफाएं,जब हवा से हो गयी.
बे चरांगा रास्तों का लुत्फ़ ही जाता रहा.


तुम अंधेरे की तरफ कुछ इस क़दर बढ़ते गये,
रौशनी मैं देखने का हुनर भी जाता रहा.


(दिल करता है कि इस शेर को कुछ ऐसे लिखूं:)

तुम सितारों की चमक में,कुछ इस क़दर मसरूफ़ थे,
के रोशनी में देखने का हुनर ही जाता रहा.


जितने मेरे हमसफ़र थे अपनी मंज़िल को गये,
मैं था, सूनी राह थी, और एक सन्नाटा रहा .


हाल-ए-मरीज़े इश्क़ का मैं क्या करूँ तुमसे बयाँ,
हर दवा का,हर दुआ का असर ही जाता रहा.

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लुत्फ़:Fun

हुनर:The art/ Capability of..

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5 comments:

  1. तुम अंधेरे की तरफ कुछ इस क़दर बढ़ते गये,
    रौशनी मैं देखने का हुनर भी जाता रहा.
    बहुत खूबसूरत ख्याल है...
    हमेशा की तरह..

    मेरा भी एक शेर आपकी नज़र....

    चाँदनी ने भटका दिया शहर-शहर दर-ब-दर
    रास्ते अंधेरों में मुझे साफ़ दिखते हैं

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  2. बहुत ही अच्छे शेर बने हैं...
    खास कर एक शमा वाला...

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  3. Is rachnake liye bhee bas ek 'waah'!
    Shabdon kee mohtaaji hai...kya karen...?

    http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.com

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