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Friday, July 9, 2010

सच बरसात का!

फ़लक पे झूम रही सांवली घटायें हैं,
बदलियां हैं या, ज़ुल्फ़ की अदायें हैं।


बुला रहा है उस पार कोई नदिया के,
एक कशिश है या, यार की सदायें हैं।


बूटे बूटे में नज़र आता है तेरा मंज़र,
मेरी दीवानगी है, या तेरी वफ़ायें हैं।


याद तेरी  मुझे दीवानवर बनाये है,
ये ही इश्क है,या इश्क की अदायें हैं।


दिल तो  मासूम है, कि तेरी याद में दीवाना है,
असल में  तो न घटा है, न बदली, न हवायें हैं! 

13 comments:

  1. बूटे बूटे में नज़र आता है तेरा मंज़र,
    मेरी दीवानगी है, या तेरी वफ़ायें हैं।
    बहुत सुन्दर रचना
    एक सलाह रचना में कई रंग डालने से बचें (अन्यथा न लें)

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  2. द्वैत और अद्वैत की चर्चा, साहब, सिर्फ़ दो ही तो रंग डालता हूं, और दोनों लहू के, यानि कि "लहू के दो रंग"! अच्छी सलाह अमल करुंगा!

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  3. पढने में दिक्कत हो रही थी इसलिये यह सलाह दिया था. उम्मीद है अन्यथा नहीं लिया होगा.
    धन्यवाद

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  4. बूटे बूटे में नज़र आता है तेरा मंज़र,
    मेरी दीवानगी है, या तेरी वफ़ायें हैं।... waah

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  5. वाह वाह्……………बहुत सुन्दर अल्फ़ाज़ और भाव्।

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  6. फ़लक पे झूम रही सांवली घटायें हैं,
    बदलियां हैं या, ज़ुल्फ़ की अदायें हैं ..

    Bahut khoob ... lajawaab sher nikaale hain kathin matle par ...

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  7. Bhai ....Maza aa gaya. Bahut hi Umda...Bahut hi Khoobsurat.

    AApki nehnat safal ho gai Ji.......

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  8. आप लोगों की मोहब्बत है, जो आम से लफ़्ज़ों को ,’शेर’ और ’गज़ल’बना देती है!तहे-दिल से शुक्रिया!आप सब सुधी पाठकों का!

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  9. bahut sundar rachana hai likhte rahiye.taki ham padhte rahe

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  10. khubsurat.. baar baar padhne ko jee chahta hai.

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