थाली के बैगंन,
लौटे,
खाली हाथ,भानुमती के घर से,
बिन पैंदी के लोटे से मिलकर,
वहां ईंट के साथ रोडे भी थे,
और था एक पत्थर भी,
वो भी रास्ते का,
सब बोले अक्ल पर पत्थर पडे थे,
जो गये मिलने,पत्थर के सनम से,
वैसे भानुमती की भैंस,
अक्ल से थोडी बडी थी,
और बीन बजाने पर,
पगुराने के बजाय,
गुर्राती थी,
क्यों न करती ऐसा?
उसका चारा जो खा लिया गया था,
बैगन के पास दूसरा कोई चारा था भी नहीं,
वैसे तो दूसरी भैंस भी नहीं थी!
लेकिन करे क्या वो बेचारा,
लगा हुया है,तलाश में
भैंस मिल जाये या चारा,
बेचारा!
बीन सुन कर
नागनाथ और सांपनाथ दोनो प्रकट हुये!
उनको दूध पिलाने पर भी,
उगला सिर्फ़ ज़हर,
पर अच्छा हुआ के वो आस्तीन में घुस गये,
किसकी? आज तक पता नहीं!
क्यों कि बदलते रहते है वो आस्तीन,
मौका पाते ही!
आयाराम गयाराम की तरह।
भानुमती के पडोसी भी कमाल के,
जब तब पत्थर फ़ेकने के शौकीन,
जब कि उनके अपने घर हैं शीशे के!
सारे किरदार सच्चे है,
और मिल जायेंगे
किसी भी राजनीतिक समागम में
प्रतिबिम्ब में नहीं,
नितांत यर्थाथ में।
ये सब हैं चाहने वाले!और आप?
Friday, May 21, 2010
Tuesday, May 18, 2010
खामोशी!
कभी खामोश रह कर
सुनो तो सही,
क्या कहती है?
मेरी ये
खामोशी!
पर अफ़सोस ये है कि,
तुम्हारे तर्क वितर्क के शोर से से घबरा कर,
अक्सर
खामोश ही रह जाती है
मेरी
खामोशी!
सुनो तो सही,
क्या कहती है?
मेरी ये
खामोशी!
पर अफ़सोस ये है कि,
तुम्हारे तर्क वितर्क के शोर से से घबरा कर,
अक्सर
खामोश ही रह जाती है
मेरी
खामोशी!
Friday, May 14, 2010
’छ्ज्जा और मुन्डेर’
कई बार
शैतान बच्चे की तरह
हकीकत को गुलेल बना कर
उडा देता हूं,
तेरी यादों के परिंद
अपने ज़ेहन की,
मुन्डेरो से,
पर हर बार एक नये झुंड की
शक्ल में
आ जातीं हैं और
चहचहाती हैं
तेरी,यादें
और सच पूछो तो
अब उनकी आवाज़ें
टीस की मानिन्द चुभती सी लगने लगीं है।
मैं और मेरा मन
दोनो जानते हैं,
कि आती है
तेरी याद,
अब मुझे,ये अहसास दिलाने कि
तू नहीं है,न अपने
छ्ज्जे पर
और न मेरे आगोश में।
शैतान बच्चे की तरह
हकीकत को गुलेल बना कर
उडा देता हूं,
तेरी यादों के परिंद
अपने ज़ेहन की,
मुन्डेरो से,
पर हर बार एक नये झुंड की
शक्ल में
आ जातीं हैं और
चहचहाती हैं
तेरी,यादें
और सच पूछो तो
अब उनकी आवाज़ें
टीस की मानिन्द चुभती सी लगने लगीं है।
मैं और मेरा मन
दोनो जानते हैं,
कि आती है
तेरी याद,
अब मुझे,ये अहसास दिलाने कि
तू नहीं है,न अपने
छ्ज्जे पर
और न मेरे आगोश में।
Friday, May 7, 2010
प्राइस टैग!
अच्छा लगता है,
टूट कर,
बिखर जाना,
बशर्ते,
कोई तो हो
जो,
सहम कर,
हर टुकडा
उठा कर
दामन में रख ले.
कीमती समझ कर!
पर,
अकसर देखा है,
घरों में,
कीमती और नाज़ुक
चीज़ों पे
प्राइस टैग नहीं होते.!
और लोग खामोश गुजर जाते हैं,
चीजों के किरच -किरच हो कर बिखर जाने पर भी!
टूट कर,
बिखर जाना,
बशर्ते,
कोई तो हो
जो,
सहम कर,
हर टुकडा
उठा कर
दामन में रख ले.
कीमती समझ कर!
पर,
अकसर देखा है,
घरों में,
कीमती और नाज़ुक
चीज़ों पे
प्राइस टैग नहीं होते.!
और लोग खामोश गुजर जाते हैं,
चीजों के किरच -किरच हो कर बिखर जाने पर भी!
Wednesday, May 5, 2010
प्लीज़!
इस बार ऐसा करना,
जब बिना बताये आओ,
किसी दिन
तो
चुपचाप
चुरा कर ले जाना,
जो कुछ भी,
तुम्हें लगे,
कीमती,
मेरे घर,
जेहन,
या शख्शियत में,
प्लीज़!
गर ये भी न हो पाया,
(कि तुम्हे कुछ भी कीमती न लगे)
तो ,
मैं,
टूट जाउंगा,
क्यों कि सुना है,
मुफ़लिसी
इन्सान को
खोखला कर देती है!
जब बिना बताये आओ,
किसी दिन
तो
चुपचाप
चुरा कर ले जाना,
जो कुछ भी,
तुम्हें लगे,
कीमती,
मेरे घर,
जेहन,
या शख्शियत में,
प्लीज़!
गर ये भी न हो पाया,
(कि तुम्हे कुछ भी कीमती न लगे)
तो ,
मैं,
टूट जाउंगा,
क्यों कि सुना है,
मुफ़लिसी
इन्सान को
खोखला कर देती है!
Tuesday, May 4, 2010
आप ही कहो,क्या सच है?
औरतें भी इन्सान जैसी हो गईं है,
माँ थीं वो, हैवान जैसी हो गईं हैं!
निरुपमा ने ये शायद सोचा नहीं था,
आधुनिकता परिधान जैसी हो गई है।
माधुरी को भी ये कब पता था,
अय्यारी ईमान जैसी हो गई है।
माँ थीं वो, हैवान जैसी हो गईं हैं!
निरुपमा ने ये शायद सोचा नहीं था,
आधुनिकता परिधान जैसी हो गई है।
माधुरी को भी ये कब पता था,
अय्यारी ईमान जैसी हो गई है।
खिलखाती खेलती थी बेटी मेरी,
खबरें सुन कर,हैरान जैसी हो गई है।
खबरें सुन कर,हैरान जैसी हो गई है।
Saturday, May 1, 2010
गद्दारी, सच में!
पैसे को हमने इस तरह भगवान कर दिया,
मक्कारी को इंसान ने ईमान कर लिया।
हमने तो उनको हाकिम का दर्ज़ा अता किया,
इज़्ज़त को सबकी,उसने पावदान कर लिया।
मिट्टी में देश की क्या अब खुशबू नहीं बची,
चंद हरकतो ने इसको नाबदान कर दिया।
यकीनन सदा से ही औरत, तस्वीरे वफ़ा है
एक गद्दार ने इस यकीं को बदनाम कर दिया।
मक्कारी को इंसान ने ईमान कर लिया।
हमने तो उनको हाकिम का दर्ज़ा अता किया,
इज़्ज़त को सबकी,उसने पावदान कर लिया।
मिट्टी में देश की क्या अब खुशबू नहीं बची,
चंद हरकतो ने इसको नाबदान कर दिया।
यकीनन सदा से ही औरत, तस्वीरे वफ़ा है
एक गद्दार ने इस यकीं को बदनाम कर दिया।
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