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Saturday, July 3, 2010

जंगली फ़ूलो का गुलदस्ता!!

मैने सोच लिया है इस बार
जब भी शहर जाउंगा,

एक खाली जगह देख कर
सजा दूंगा अपने 

सारे ज़ख्म,

सुना है शहरों मे 


कला के पारखी 


रहते है,


सुंदर और नायब चीजों, 


के दाम भी अच्छे मिलते है वहां।

पर डरता हूं ये सोच कर,



जंगली फ़ूलो का गुलदस्ता, 




कोई भी नहीं सजाता अपने घर में!




खास तौर पे बेजान शहर में!



10 comments:

  1. बढ़िया भावपूर्ण रचना .....

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  2. bahot achchi lagi choti si kavita.

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  3. रचना तो बहुत ही बढ़िया है!
    --
    मगर गुलदस्ते में जंगली फूलों का दम घुट सकता है!

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  4. अरे साहब,
    क्यों मार्केट की चकाचौंध में लाकर उनका जीवन दूभर करने की सोच रहे हैं?
    ’जहां का फ़ूल है वो, वहीं पर वो खिलेगा’
    बहुत शानदार।

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  5. बेहतरीन भाव---------कल के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।

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  6. जंगली फूल पौधों पर ही अच्छे लगते हैं ...
    सुन्दर रचना !

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  7. वाह बहुत हो नायाब लिखा है ... जख्म सज़ा दूँगा ... शहर में ... ग़ज़ब के भाव ..

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