ये सब हैं चाहने वाले!और आप?
Saturday, February 26, 2011
Thursday, February 24, 2011
दुआ बहार की!
क्या कह दूँ के तुम्हें करार आ जाये,
मेरी बातों पे तुम्हें ऎतबार आ जाये॥
दिल इस दुनिया से क्यूँ नहीं भरता,
उनकी बेरूखी पे भी प्यार आ जाये।
दर्द इतने मैं कहाँ छुपाऊँ भला,
मौत से कहो एक बार आ जाये।
वीरानियाँ भी तो तेरा हिस्सा हैं,
या खुदा इधर भी बहार आ जाये।
Sunday, February 13, 2011
Valentine Day!
Two young kids, 'Hemanshi' & 'Anjaney' aged about 11 and approx 8 yrs approached me to write a poem each for them which they can dedicate to their mothers on'Valentine day"! I am honored, & think that my journey to poetry has come to its destination!
The poems respectively are here:
Poem from Anshi to her MOM
Mom I wish I had known,
what "Love" is all about,
Only to say it to you,
with conviction that,
I LOVE U!
But on this day,
When the whole world talks of LOVE,
I grow in carefull affection and care of,
ONLY YOU!
around me!
So that one day I can ,
undersatnd and tell others,
what
'LOVE'
is all about!
अंजनेय की कविता उसकी मम्मा (माँ) के लिये!
माँ! क्या फ़र्क है!
मैं कभी जान पाऊँ या नहीं,
कि "प्यार" क्या होता है?
पर जब तक मुझे ये याद रहेगा कि,
कि तू कितने अच्छे नूडल बनाती है,
मेरे लिये,
मुझे समझने की ज़रूरत भी क्या है?
कि 'प्यार' 'व्यार' होता क्या है!
I LOVE U MOMA!
Saturday, February 12, 2011
डरे हुये तुम!
तुम मुझे प्यार करना बन्द मत करना,
इस लिये नहीं कि,
मैं जी नही पाऊँगा,
तुम्हारे प्यार के बिना,
हकीकत ये है, कि
मैं मर नहीं पाऊँगा सुकून से,
क्यो कि,
जिस को कोई प्यार न करता हो,
उसका मरना भी कोई मरना है!
और वैसे भी,
सूनी और वीरान कब्रें,
बहुत ही डरावनी लगती है!
और कौन है? जो फ़ूल रखेगा,
मेरी कब्र पर,तुम्हारे सिवा!
सच में, मैं ये जानता हूँ,
तुम्हें कितना डर लगता है,
वो ’हौरर शो’ देखते हुये!
और डरे हुये तुम
मुझे बिल्कुल अच्छे नहीं लगते।
Saturday, February 5, 2011
तितलियों की बेवफ़ाई!
कुछ और ही होता
चमन का नज़ारा
अगर,
गुल ये जान जाते,
तितलियाँ और भ्रमर,
आते नहीं रंग-ओ-बू के लिये,
मकरंद का रस है,
उनके आने की वजह।
हाँ मगर,
यह छोटा सा मिलन भी,
स्वार्थ के कारण ही सही,
देके जाता है ,
चमन को ,
दास्ताँ हर बार एक नई।
और चलती है,
प्रकृति
सर्जन के,
इस बेदर्द वाकये,
के भरोसे!
फ़ूल का खिलना हो,
या भ्रमर का गुंजन,
जारी है निरंतर,
और,
चमन गुलज़ार है,
दर्द से भरी
पर हसीं
दास्तानो से!
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