जब भी आपको झूंठ बोलना हो!
(अब आज कल करना ही पडता है!)
एक काम करियेगा,
झूंठ बोल के, कसम खा लीजियेगा,
अब! कसम जितनी मासूम हो,
उतना अच्छा!!
बच्चे की कसम,
सच्चे की कसम,
झूंठ के लच्छे की कसम,
हर एक अच्छे की कसम,
अच्छा माने
गीता,कुरान,
बच्चे की मुस्कान,
तितली के रंग,
कोयल की बोली,
बर्फ़ की गोली,
तोतली बोली,
मां की डांट
पल्लू की गांठ,
...आदि,आदि
चाहे जो भी हो कसम ’पाक’ लगे!
लोग सच मान लेगें!
अगर न भी मानें,
तो भी कसम की लाज निभाने के लिये,
सच मानने का नाटक जरूर करेंगे!
दरअसल,
लोग झूंठे, इस लिये नहीं होते,
कि वो झूंठ बोलते हैं!
वो झूंठे तब साबित होते हैं,
जब वो झूंठ सुनकर भी,
उसे ’सच’ मान लेने का नाटक करते हैं!!
क्यों कि वो सच का सामना करने से,डरते हैं!
"सच में"
कसम तो मैं खाता नहीं!