आम के बौर की खुशबू,उसे समझाऊँ कैसे,
शहर में रहता है उसे बाग तक लाऊँ कैसे।
अक्सर वो यूँही मेरी बात से डर जाता है,
बडा मासूम है,अहदे जहाँ सिखाऊँ कैसे।
मेरी फ़ितरत ही अज़ब है हवा का झोका हूँ,
वो हसीं ख्याब है मैं उसको जगाऊँ कैसे।
दस्तूर,समझदारी, इल्म, किताबें और उसूल,
दिल मगर नाँदा है,दिल को समझाऊँ कैसे।
आँखें उसकी मोहब्बत से भरी रहती हैं,
खारा अश्क हूँ, उस आँख में आऊँ कैसे।