मन इंसान का,
अपना कभी पराया है,
मन ही है जिसने
इंसान को हराया है,
मन में आ जाये तो,
राम बन जाये तू,
मन की मर्ज़ी ने ही तो,
रावण को बनाया है!
मन के बस में ही,है
इंसान और उसकी हस्ती
मन की बस्ती में आबाद
यादों का सरमाया है,
मन है कभी चमकती
धूप सा रोशन,
मन के बादल में ही तो
नाउम्मीदी का साया है,
मन ही लेकर चला
अंजानी राहो पे,
मन ही है जिसने
मुझे भटकाया है,
मन ही वजह
डर की बनता है कभी,
इसी मन ने ही
मुझे हौसला दिलाया है,
कभी बच्चे की मानिंद
मैं हँसा खिलखिलाकर,
इसी मन ने मुझे कभी,
बेइंतेहा रुलाया है,
मन तो मन है,
इंसान का मन,
मन की मर्ज़ी,को,
भला कौन समझ पाया है?